व्यस्त हूं शायद खुद से ही इतना कि बेवक्त में भी नम इन आंखों से
अधूरी इन कल्पनाओं के साथ यूं ही चल देता हूं
तुम्हें शायद मैं कभी बारीकी से पढ़ ही ना सका पर
जब कभी मौका ये मिले तोह अक्सर किताबों में तुम्हारा वह सुनहरा नाम
जरूर पढ़ लेता हूं
परवाह बेसख अब उतनी ना रही हो मेरी तुम्हारे लिए पर
जब कभी वक्त यह मिले टूटे इन ख्वाबों से तुम्हें मै याद जरूर कर लेता हूं
ये लम्हे भी यू ही बीत जाएंगे आने वाले
तुम्हें खोजते खोजते ही,पर
काश कभी एक बार तुम मेरी उन कल्पनाओं की आंखों में फिर से जरूर आना
यू आखिर कब तक ढूंढता रहूं मैं तुम्हें अपने इन अल्फाजों में ही
असल अगर ये दुनिया है तोह तुम भी असलियत में एक बार जरूर आना
Yãsh✍️
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