कभी ये नाव जैसी हैं, कभी पतवार जैसी हैं किनारा हैं कभी ये और कभी मझधार जैसी हैं इन्हें बस खेलने का तुम कोई सामान मत समझो कलम-सी लड़कियाँ ये सब खुली तलवार जैसी है.
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