कोई ये लाख कहे मेरे बनाने से मिला
हर नया रंग ज़मान
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कोई ये लाख कहे मेरे बनाने से मिला हर नया रंग ज़माने को पुराने से मिला, उसकी तकदीर अंधेरों ने लिखी थी शायद वो उजाला जो चिरागों को बुझाने से मिला, फिक्र हर बार खामोशी से मिली है मुझको और ज़माना ये मुझे शोर मचाने से मिला, और लोगों से मुलाकात कहां मुमकिन थी वो तो खुद से भी मिला है तो बहाने से मिला, मदन मोहन 'दानिश' ©Khan Sahab

#लोगों_से_मुलाक़ात_कहां_मुमकिन  कोई ये लाख कहे मेरे बनाने से मिला
हर नया रंग ज़माने को पुराने से मिला,

उसकी तकदीर अंधेरों ने लिखी थी शायद
वो उजाला जो चिरागों को बुझाने से मिला,

फिक्र हर बार खामोशी से मिली है मुझको
और ज़माना ये मुझे शोर मचाने से मिला,

और लोगों से मुलाकात कहां मुमकिन थी
वो तो खुद से भी मिला है तो बहाने से मिला,

मदन मोहन 'दानिश'

©Khan Sahab
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