White वफ़ा की उम्मीद किससे है,
इश्क़-मोहब्बत किससे है।
हर क़दम पर रंग-भेद,
तो फिर ये चाहत किससे है।
दिल लगाते हैं, मगर डरते हैं,
सच कहें तो सभी छलते हैं।
वफ़ा की क़ीमत नहीं इस दौर में,
फिर भी ये उम्मीद किससे है।
हर चहरे पर मुखौटे हैं,
हर रिश्ता जैसे सौदे हैं।
जिनसे प्यार था, वही पराये,
फिर ये मोहब्बत किससे है।
सफर में कांटे बिछे हर जगह,
साये तक साथ छोड़ देते हैं।
जिनसे वफ़ा की आस लगाई,
उनसे शिकवा फिर किससे है।
सोचता हूँ ये सवाल हर रोज़,
क्या जवाब है कोई मेरे पास।
शायद दिल ही गलत करता है,
वफ़ा की उम्मीद भी किससे है।
©theABHAYSINGH_BIPIN
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