देखो झरनों में कितनी रंग समायी है मिलके रात से भी दिन कितनी परायी हैं ना छोड़ा छाप किसी ने तुम भी लगते हो वहीं झरने ओ निर्मोही तुम भी मोह कैसे छुपाते हो.
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