Navratri Day 2
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Happy makar sankranthi🐄🔱 ©Teja Mudapalli

#Devotional #sankranti #navratri #goddess #Bhakti  Happy makar sankranthi🐄🔱

©Teja Mudapalli

God is most glorified in us when we are most satisfied in Him." JOHN PIPER ©Rajavarapu Teja

#navratri #wishes  God is most glorified in
 us when we are most 
satisfied in Him."

JOHN PIPER

©Rajavarapu Teja

#navratri

17 Love

∆∆ नवरात्रि (मॉं दुर्गा) ∆∆ सतत् ऊर्जा के संचयन, संलयन और रूपांतरण के लिए शक्ति के साथ एक बेहतर संयोग और समन्वय आवश्यक है। पुरुष और प्रकृति के तादात्म्य से पूर्णता जन्म लेती है दोनों एक दूसरे के पूरक है। ऊर्जा के एक स्थाई स्रोत के रूप में शक्ति की उपस्थिति को अनुभूत करनें के लिए खुद के शिव तत्व को परिमार्जित करना पड़ता है तभी इसका सहज साक्षात्कार सम्भव है। चैतन्य यात्रा में शिव-शक्ति,पुरुष-प्रकृति ये सब उस आदि ब्रह्म के प्रतीक है जिनका अंश लेकर हम इस ग्रह पर विचरण कर रहें हैं। मन के तुमुल अन्धकार के समस्त प्रयास शक्ति से सम्बंधता बाधित करने के रहते है। वो हमें दीन असहाय भरम में पड़े देखना चाहता है उसकी चाह में कुछ अंश प्रारब्ध का है तो कुछ हमारे कथित अर्जित ज्ञान का। शक्ति स्वरूपा नाद को अनुभूत करने के लिए कामना रहित समर्पण चाहिए होता है। अस्तित्व को मूल ऊर्जा स्रोत से जोड़ने की अपेक्षित तैयारी भी अनिवार्य होती है। 'स्व' को व्यापक दृष्टि में पूर्ण करने के लिए शिव और शक्ति से सम्मलित ऊर्जा आहरित करनी होती है। आप्त पुरुष अहंकार को तज शक्ति की सत्ता को स्मरण करते है। उसकी उपस्थिति में याचक नही अधिकारपूर्वक ढंग से खुद को समर्पित कर पूर्णता की प्रक्रिया का हिस्सा बनतें हैं। पौराणिक गल्प से इतर पुरुष प्रकृति के सांख्य योग के बीज सूत्र सदैव से अखिल ब्रह्माण्ड में उपस्थित रहते है। अपनी तत्व दृष्टि और पुनीत अभिलाषा से उनसे केंद्रीय संयोजन और संवाद की आवश्यकता होती है। शिव तत्व को शक्ति के समक्ष समर्पित करके खुद की लघुता का बोध प्रकट होता है। और यही लघुता अस्तित्व की ऊंची यात्राओं का निमित्त बनती है। कण-कण में चेतना और संवदेना को अनुभूत करनें के लिए खुद को देह लिंग और ज्ञान के आवरण से मुक्त कर सच्चे अर्थों में मुक्तकामी और पूर्णतावादी बनना पड़ता है। रात्रि अन्धकार का प्रतीक लौकिक दृष्टि में मानी गई है, परंतु रात्रि वस्तुतः अन्धकार की नही अपने अस्तित्व की अपूर्णता का प्रतीक है। दिन के प्रकाश में अन्तस् के उन गहरे वलयों को हम देख नही पाते है। जिन पर अहंकार की परत जमी होती है। रात्रि का अन्धकार अन्तस् में प्रकाश आलोकित करने का अवसर प्रदान करता है, जिसके माध्यम से हम अपने अन्तस् में फैले अन्धकार को देख सकते हैं। और बाहर से अन्धकार से उसकी भिन्नता को अनुभूत कर सकते हैं। शक्ति की उपादेयता हमें आलोकित और ऊर्जित करने की है। पुरूष और प्रकृति का समन्वय ब्रह्माण्ड के वृहत नियोजन का हिस्सा है जो जीवात्माएं इस नियोजन में खुद की भूमिका को पहचान लेती है। वें सच में अस्तित्व की समग्रता को भी जान लेती है। शिव-शक्ति के तादात्म्य के अनुकूल अवसर के रूप में संख्याबद्ध दिन या रात का निर्धारण एक पंचागीय सुविधा भर है, इस उत्सव में खुद को समर्पित और सहज भाव से शामिल करके खुद को परिष्कृत किया जा सकता है। और उस अनन्त की यात्रा की तैयारी के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचयन भी किया जा सकता है जिसके बल पर हमें पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तोड़कर एक दिन उसी शून्य में विलीन हो जाना है जहाँ से एकदिन सायास हम यहां आए थे। -✍️ अभिषेक यादव ©Abhishek Yadav

#विचार #navratri  ∆∆ नवरात्रि (मॉं दुर्गा) ∆∆
      
सतत् ऊर्जा के संचयन, संलयन और रूपांतरण के लिए शक्ति के साथ एक बेहतर संयोग और समन्वय आवश्यक है। पुरुष और प्रकृति के तादात्म्य से पूर्णता जन्म लेती है दोनों एक दूसरे के पूरक है। ऊर्जा के एक स्थाई स्रोत के रूप में शक्ति की उपस्थिति को अनुभूत करनें के लिए खुद के शिव तत्व को परिमार्जित करना पड़ता है तभी इसका सहज साक्षात्कार सम्भव है। चैतन्य यात्रा में शिव-शक्ति,पुरुष-प्रकृति ये सब उस आदि ब्रह्म के प्रतीक है जिनका अंश लेकर हम इस ग्रह पर विचरण कर रहें हैं।

मन के तुमुल अन्धकार के समस्त प्रयास शक्ति से सम्बंधता बाधित करने के रहते है। वो हमें दीन असहाय भरम में पड़े देखना चाहता है उसकी चाह में कुछ अंश प्रारब्ध का है तो कुछ हमारे कथित अर्जित ज्ञान का।

शक्ति स्वरूपा नाद को अनुभूत करने के लिए कामना रहित समर्पण चाहिए होता है। अस्तित्व को मूल ऊर्जा स्रोत से जोड़ने की अपेक्षित तैयारी भी अनिवार्य होती है।
'स्व' को व्यापक दृष्टि में पूर्ण करने के लिए शिव और शक्ति से सम्मलित ऊर्जा आहरित करनी होती है।

आप्त पुरुष अहंकार को तज शक्ति की सत्ता को स्मरण करते है। उसकी उपस्थिति में याचक नही अधिकारपूर्वक ढंग से खुद को समर्पित कर पूर्णता की प्रक्रिया का हिस्सा बनतें हैं। पौराणिक गल्प से इतर पुरुष प्रकृति के सांख्य योग के बीज सूत्र सदैव से अखिल ब्रह्माण्ड में उपस्थित रहते है। अपनी तत्व दृष्टि और पुनीत अभिलाषा से उनसे केंद्रीय संयोजन और संवाद की आवश्यकता होती है।

शिव तत्व को शक्ति के समक्ष समर्पित करके खुद की लघुता का बोध प्रकट होता है। और यही लघुता अस्तित्व की ऊंची यात्राओं का निमित्त बनती है। कण-कण में चेतना और संवदेना को अनुभूत करनें के लिए खुद को देह लिंग और ज्ञान के आवरण से मुक्त कर सच्चे अर्थों में मुक्तकामी और पूर्णतावादी बनना पड़ता है। 

रात्रि अन्धकार का प्रतीक लौकिक दृष्टि में मानी गई है, परंतु रात्रि वस्तुतः अन्धकार की नही अपने अस्तित्व की अपूर्णता का प्रतीक है। दिन के प्रकाश में अन्तस् के उन गहरे वलयों को हम देख नही पाते है। जिन पर अहंकार की परत जमी होती है। रात्रि का अन्धकार अन्तस् में प्रकाश आलोकित करने का अवसर प्रदान करता है, जिसके माध्यम से हम अपने अन्तस् में फैले अन्धकार को देख सकते हैं। और बाहर से अन्धकार से उसकी भिन्नता को अनुभूत कर सकते हैं। 

शक्ति की उपादेयता हमें आलोकित और ऊर्जित करने की है। पुरूष और प्रकृति का समन्वय ब्रह्माण्ड के वृहत नियोजन का हिस्सा है जो जीवात्माएं इस नियोजन में खुद की भूमिका को पहचान लेती है। वें सच में अस्तित्व की समग्रता को भी जान लेती है। शिव-शक्ति के तादात्म्य के अनुकूल अवसर के रूप में संख्याबद्ध दिन या रात का निर्धारण एक पंचागीय सुविधा भर है, इस उत्सव में खुद को समर्पित और सहज भाव से शामिल करके खुद को परिष्कृत किया जा सकता है। और उस अनन्त की यात्रा की तैयारी के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचयन भी किया जा सकता है जिसके बल पर हमें पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तोड़कर एक दिन उसी शून्य में विलीन हो जाना है जहाँ से एकदिन सायास हम यहां आए थे।
     -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav

#navratri अनमोल विचार आज शुभ विचार

10 Love

मां ब्रह्मचारिणी जन्म से कौमार्य तक ब्रह्म की चरित्र शुद्धि रखना विवाह पूर्व साधक सम साधना करना अंत में मनचाहे वरदान की स्वामिनी बनी। यह संघर्ष आज की नारी के लिए प्रेरणादायी है ©वैभव जैन

#navratri #Quotes  मां ब्रह्मचारिणी 

जन्म से कौमार्य तक ब्रह्म की चरित्र शुद्धि रखना
विवाह पूर्व साधक सम साधना करना
अंत में मनचाहे वरदान की स्वामिनी बनी।
 यह संघर्ष आज की नारी के लिए प्रेरणादायी है

©वैभव जैन

#navratri day 2

11 Love

Joy maa durga 🙏🏻 ©Sanu Jana

#navratri  Joy maa durga 🙏🏻

©Sanu Jana

#navratri

12 Love

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। ©Sonu Goyal

#navratri #Bhakti  दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु |
 देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा || 



या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

©Sonu Goyal

#navratri

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