बिना पर्दों की खिड़कियां
बिना पर्दों की खिड़कियां, मेरा जीवन जैसा है,
हर झोंका हवा का, एक नया किस्सा जैसा है।
न छुपाव है, न कोई परत चढ़ी,
जैसे हूँ, वैसा हूँ, सदा यही धड़ी।
सूरज की किरणें भी झांक जाती हैं,
चाँद की चांदनी रातें सहला जाती हैं।
कभी बिखरा, तो कभी संवर गया,
हर तूफान में खुद को निखार गया।
जो देखना चाहे, देख ले सारा,
यह जीवन खुली किताब का सहारा।
बिना पर्दों की खिड़कियां, ये मेरा जहां,
सच और सादगी है मेरी पहचान।
©Avinash Jha
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