#भूल_न_पाता_मन_कभी
भूल ना पाता मन कभी,वो आंचल की छाॅंव।
जहाॅं सुबह से शाम तक, नेह बरसता ठाॅंव।।
अॅंगुली पकड़ी जिस पिता,सीखी जीवन चाल।
अब उन्हीं की झुकी कमर,थकित हो गये पाॅंव।।
भूल ना पाता मन कभी,बचपन वाले खेल।
कागज की कश्ती कभी, छुक-छुक करती रेल।
प्यारे दिन मस्ती भरे,बचपन के सब दोस्त-
हुई लड़ाई एक पल,अगले ही पल मेल।।
भूल ना पाता मन कभी, किलकारी की गुंज।
सुत आया जब गोद में,मन खुशियों का कुंज।
मुदित हुआ मन मां बनी,दिल में खुशी अपार -
यह सुख जग सबसे बड़ा,बाकी सब सुख मुंज।।
वीणा खंडेलवाल
तुमसर महाराष्ट्र
©veena khandelwal
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