मुझे समझ पाना अब मेरे वस में भी नहीं है,
शायद एक वही शख्स मेरे दस्तरस में नहीं है,
उसकी मौजूदगी का यकीन खुद को दिलाऊ कैसे,
ये कसमक्स है कि खुद को उससे दूर रख पाऊं कैसे,
उसका मिलना न मिलना तो फकत किस्मत की बात है,
मिलों सी दूरी को दूर कर पाऊं कैसे,
हां उसकी सादगी ने ही लूटा है मेरे मोहब्बत का सल्तनत,
उसका होकर किसी और का हो जाऊं कैसे..!!
©Poet Shawaaz
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here