कल रात, मैं अंतहीन धाराओं में भटकता रहा,
टूटे सपनों की भूलभुलैया में खोया रहा।
तुम्हारा नाम, एक फुसफुसाहट, एक सताता हुआ राग,
प्यार की एक छाया जो अभी भी अपना दाग छोड़ती है।
रात साजिश करती है, यह मुझे कस कर पकड़ती है,
मेरे दिल को भय की गूँज से भर देती है।
खामोशी से भी गहरा, दर्द अपना असर दिखाता है,
मैं एक ऐसे अंधेरे में फँस गया हूँ जो मुझे पूरी तरह से निगल जाता है।
क्या मुझे अपने रोए आँसुओं के लिए तुम्हारे नाम को कोसना चाहिए,
या अपने दिल को उस जगह डूबने देना चाहिए जहाँ निराशा रहती है?
तारे फीके पड़ गए हैं, चाँद दूर चला गया है,
और दिन के अंत में मैं इस दर्द के साथ रह गया हूँ।
©itvik
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