KaviRaj bhatapara

KaviRaj bhatapara

भावनाएँ कागज पे उतारता हूँ, कलम प्यार की चलाता हूँ बैर ना रखु कभी किसी से ऐसी मेरी छवी रहने दो राज कहती हैं दुनिया एक छोटा सा कवि हु मुझे कवि रहने दो

  • Latest
  • Popular
  • Repost
  • Video

दोस्तों से हारता हूं मैं सिर्फ दोस्ती के लिए वरना दुश्मनों से मेरा कद कहां मिलता है ©KaviRaj bhatapara

#शायरी #newplace  दोस्तों से हारता हूं मैं सिर्फ दोस्ती के लिए
वरना दुश्मनों से मेरा कद कहां मिलता है

©KaviRaj bhatapara

#newplace

15 Love

जो किसी और का थोड़ा भी है वो मुझे थोड़ा भी नहीं चाहिएं ©KaviRaj bhatapara

#शायरी #humantouch  जो किसी और का थोड़ा भी है
वो मुझे थोड़ा भी नहीं चाहिएं

©KaviRaj bhatapara

#humantouch

13 Love

तेरी वफ़ाओ का गुलाब छुपा रखा है। सीने में चाहतों का किताब छूपा रखा है।। तुम आओ न आओ ये मर्जी तुम्हारी, मैंने पलकों में कई हसी ख्वाब छुपा रखा है।। ©KaviRaj bhatapara

#लव #Books  तेरी वफ़ाओ का गुलाब छुपा रखा है।
सीने में चाहतों का किताब छूपा रखा है।।
तुम आओ न आओ ये मर्जी तुम्हारी,
मैंने पलकों में कई हसी ख्वाब छुपा रखा है।।

©KaviRaj bhatapara

#Books @Anupriya

17 Love

तेरे इश्क से इस कदर गुजरने लगा हूं उम्र नहीं मरने की पर तुझपे मरने लगा हूं आईना देखने की अब मुझे जरूरत नहीं घर की दीवार देख मैं सजने संवरने लगा हूं ©KaviRaj bhatapara

#OneSeason #लव  तेरे इश्क से इस कदर गुजरने लगा हूं
उम्र नहीं मरने की पर तुझपे मरने लगा हूं
आईना देखने की अब मुझे जरूरत नहीं
घर की दीवार देख मैं सजने संवरने लगा हूं

©KaviRaj bhatapara

#OneSeason

19 Love

मेरी आंखों में, जुगनू की तरह तुम चमकने लगे हो। मेरी मोहब्बत को शाय़द तुम, जानने समझने लगे हो।। मेरी बेकरारी से फिर भी, तुम अंजान बनते हो। उलझा रहे हो मुझे, या खुद ही उलझनें लगे हो।। ©KaviRaj bhatapara

#ballet #लव  मेरी आंखों में, जुगनू की तरह तुम चमकने लगे हो।
मेरी मोहब्बत को शाय़द तुम, जानने समझने लगे हो।।
मेरी बेकरारी से फिर भी, तुम अंजान बनते हो।
उलझा रहे हो मुझे, या खुद ही उलझनें लगे हो।।

©KaviRaj bhatapara

#ballet

15 Love

ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है। पर तपीस तेरी आंखों की, सुकुन ढाने लगी है।। सोने लगा हूं मैं, अब नींद पूरी होने तक! जब से तू रोज ख्वाबों में, आने-जाने लगीं है।। ©KaviRaj bhatapara

#teatime #लव  ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है।
पर तपीस तेरी आंखों की, सुकुन ढाने लगी है।।
सोने लगा हूं मैं, अब नींद पूरी होने तक!
जब से तू रोज ख्वाबों में, आने-जाने लगीं है।।

©KaviRaj bhatapara

#teatime

13 Love

Trending Topic