तेरे सज़दे में आसमां को, तकती उदास निग़ाहों में, मैंने आरज़ू बड़े शिद्दतो से की थीं। बदलते पैरहन के शिकंजे में, फिसलती बन्द मुठ्टीयों का सपना.. क्यों?अधूरा रह.
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