तेरे सज़दे में आसमां को,
तकती उदास निग़ाहों में,
मैंने आरज़ू बड़े शिद्दतो से की थीं।
बदलते पैरहन के शिकंजे में,
फिसलती बन्द मुठ्टीयों का सपना..
क्यों?अधूरा रह जाता है।
मैं जानता हूँ...कभी न कभी
मकसद पूरा हो न हो...
ज़िंदगी को जीने का सब़ब,
फिर से आ ही जाता है।
बन्द लिफाफे में पढ़ने को,
अभी बहुत कुछ है।
ज़िंदगी को जीने का सब़ब,
फिर से आ ही जाता है।
कल तक तन्हाई से डरता था,
तन्हाई में जीना आ ही जाता है।
एक तरफ है खुला आसमां,
उसपे है तेरी नज़रों का सरुर।
रंग बदलती इस दूनियां के,
बदलते पैरहन के शिकंजे में,
फिसलती.. बन्द मुठ्टीयों का सपना,
क्यों?अधूरा रह जाता है।-राजीव
©Rajiv