मेरे अंदर का बच्चा काश तू अभी भी वही नादान होती
फिर तेरे जज्बात की डोर यूँ टूटी ना होती ...
फिर कोइ इन्सान तुझसे बेवफा ना होता ...
गर होता भी तो तुझपे कोइ असर ना होता ।
मासूमियत अब भी बरकरार है तझमें
पर फर्क सिर्फ इतना हे कि
अब तू चीख़ चीख़कर नहीं रोती ....
वक्त बदला है ,उम्र बढ़ी है .....
पर आदतें तेरी अब भी वेसी ही हैं..
खुद ही रूठकर खुद को मनाती है....
अंजली तू अब भी दर्द को छुपाती है...
तन्हा हो कितनी ही ,पर दूसरों को हंसाती है.....
पर चाहे कुछ भी हो....
तेरे अन्दर हिम्मत अब भी नज़र आती है .....😊😊
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