लगी थी हमें, प्यास बुझाने की आस ; इसलिए बैठे रहे हम, उस झील के पास | सब्र की भी परीक्षा है ये, जो बैठे है वो इस मार्ग में आज..... लगे हम होने क्यों बैचैन, जो दू.
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