लगी थी हमें, प्यास बुझाने की आस ;
इसलिए बैठे रहे हम, उस झील के पास |
सब्र की भी परीक्षा है ये,
जो बैठे है वो इस मार्ग में आज.....
लगे हम होने क्यों बैचैन,
जो दूर ना होते, इक पल को भी...
उस जल के ख़ास ;
-"
©Naresh singh rawat
लगी थी हमें, प्यास बुझाने की आस ;
इसलिए बैठे रहे हम, उस झील के पास |
सब्र की भी परीक्षा है ये,
जो बैठे है वो इस मार्ग में आज.....
लगे हम होने क्यों बैचैन,
जो दूर ना होते, इक पल को भी...
उस जल के ख़ास ;
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