मुसाफिर हूँ तो ठहरा हूँ,
नहीं होता तो चल देता।
पथिक हूँ वो मैं राहों का,
जो तुझको आत्मबल देता।
सिंचा जाता जो सदियों तक,
वहीं पौधा है फल देता।
ज़माना कौन है मेरा,
जो मुझको कोई हल देता।
ज़माना कौन है मेरा,
जो मुझको कोई हल देता।
बदल पाता ग़र जो मैं,
ज़माना ही बदल देता।
मुसाफिर हूँ तो ठहरा हूँ,
नहीं होता तो चल देता।
©Gunja Agarwal
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