हमारे ज़माने में तो स्वागत में सासू लगी , सजनी बैठी दूर ।
सरहज मन मुस्का रही , देख देख के नूर ।।
खीर पुआ लेके खड़ी , देखो पितिया सास ।
खुश होगें दामाद जी , मन में लेकर आस ।।
सासू पंखा दे रही , और रही मुस्काय ।
पाहुन शर्मीले मिलें , बिटिया दियो बुलाय ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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