एक रोज़ जब थक कर अपनी बेशर्मियो पर शर्मिंदा होएगा,
तुझे याद आयेंगे मुझ पर किए हुए सितम, तो तू भी रोएगा,
माना मेरी मोहब्बत औरों सी नहीं पर समुद्र सी गहरी तो थीं,
वफ़ा थीं, जफ़ा थी, थोड़ी चंचल थी पर तुझपर ही ठहरी तो थीं,
खेला है तूने जो दाव मुझ पर, वो हिस्सा प्रेम का तू भी खोएगा,
जिस्म मिलेगा मिट्टी का पर इश्क़ में रम जाए ऐसी रूह को रोएगा,
ख़ुद से खुदा मान बैठें थे, इश्क़ का जुनून कुछ ऐसा चढ़ा मुझ पर,
तुझे ही पूजा तुझे ही चाहा, तन मन, और रूह वार दिया तुझ पर,
रज़ा भी तेरी सजा भी तेरी, पर ठहर ये बात जान जो भी तू बोएगा ,
छल के मुझे दगा दे कर सुन ये बेदर्दी, कभी सुकून से न सोएगा ।
©shalmali Shreyankar
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