मैं हूं बस एक केवल इस आस में
बैठूंगा एक दिन कभी तेरे साथ में
कोई 11- 12 बजे किसी रात में
किसी एक छत पर ,कही एकांत में
किसी शहर में, किसी एक प्रांत में
जब चांदनी अपनी चमक छलका रही होगी
तेरे कानों की बाली से लग बलखा रही होगी
ठंडी हवाएं तेरे कोमल गालों को सहला रही होगी
कुछ बहकी फिजाएं तेरे मन को बहला रही होगी
पास जा बैठूंगा तुम्हारे पास और तुम्हें टक टक निहारूंगा तुम्हारे लटकते हुई जुल्फों को बड़े प्रेम से संवारूंगा
थाम हाथ तेरा, तेरे हाथों में कुछ चूड़ियां पहनाऊंगा
नजरें मिला तुमसे तुम्हें कुछ अपनी पंक्तियां सुनाऊंगा
हाल ए दिल समझ लेना तुम, इससे ज्यादा ना कह पाऊंगा
तेरे गोद में फिर सिर रख कर फिर टूट जाऊंगा बिखर जाऊंगा
©"Vibharshi" Ranjesh Singh
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