शीर्षक- महाकुंभ की महिमा
पावन पूर्ण कुंभ की बेला,
बड़े भाग्य से आई।
खुशी अनोखी जनमानस के,
अंतस में है छाई।
महाकुंभ पावन प्रयाग में,
दिव्य छटा लाया है।
द्वादश पूर्ण कुंभ जब बीते,
तब अवसर पाया है।
बारह पूर्ण कुंभ होने पर,
महाकुंभ आता है।
यह केवल प्रयाग में आता,
जन-जन हर्षाता है।
गंगा जमुना सरस्वती का,
संगम तीर्थ कहाता।
मिट जाते सब पाप मनुज के,
जो जन यहाँ नहाता।
धन्य धरा पावन प्रयाग की,
लगा कुंभ का मेला।
महाकुंभ की छटा निराली,
यहाँ मनुज का रेला।
सभी तीर्थ आते प्रयाग में,
धन्य भाग्य भारत के।
पाप ताप संताप मिटाते,
दीन दुखी औरत के।
जिनके दर्शन सुलभ नहीं वे,
साधु संत आए हैं।
जिनकी प्रभु में परम आस्था,
भक्त स्वयं आए हैं।
गंगा तट की शोभा सुषमा,
मुख से कहीं न जाती।
लख सौंदर्य प्रयागराज का,
इंद्रपुरी शरमाती।
दान पुण्य स्नान करें हम,
संगम तट पर जाएं।
कूड़ा कचरा नाम मात्र भी,
कहीं नहीं फैलाएं।
रखें स्वच्छता हम घाटों पर,
सबको यही सिखाएं।
गंगा में स्नान बनाकर,
कोटि यज्ञ फल पाएं।
चौधरी हरदीन कूकना
मकराना, राजस्थान
©CHOUDHARY HARDIN KUKNA
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