सबेरे,सबेरे गयन जब सिवाने !
वहीं गाँव कै 'मंगरू' काका भेंटाने !!
पानी से कुर्ता,रहा सगरौ भीजत !
फरूहा लिहे वै,रहे खेत सींचत !!
दुआ पैलगी भै,दिहिन छेड़ चर्चा !
घटत हौ कमाई,बढ़त जात खर्चा !!
दइव से बची जौ,तौ ई बीमारी मारै !
नोन,तेल,लकड़ी,औ तरकारी मारै !!
पढ़ाई,लिखाई,दवाई कै खर्चा !
'अइस तीत लागै,पकौड़ी कै मरचा !!'
झरै पूस झर,झर,चरैं गोरु दइया !
रखाई सगर राति,खेते मा भइया !!
कहाँ ले रखाई,बकिल चउआ,चांगर !
भयन बूढ़ अब ना, रहा जोर,जांगर।!!
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रवि श्रीवास्तव
( गाँव माचा,जिला बस्ती )
©Ravi Srivastava
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