मन में एक बात आई है ,
जो जुबां से कहनी चाही है
इस दुनिया से लोग कहां जाते है?
ये रिश्ते नाते ईश्वर क्यों बनाते हैं?
एक दिन जाना सबको होता है,
फिर इतना लाड प्यार दिया क्यों जाता है?
एक बेटी के लिए पिता क्या होता है?
पिता का साया छिन जाए उसके बाद क्या होता है?
ये दुनिया दारी ईश्वर ने क्यों बनाई है?
ये भगवान ने कटपुतलियों जैसी जिंदगी क्यों बनाई है?
क्या सबको प्यार नसीब होता है? किसीको को इतना सुख तो किसीको
सिर्फ दुख ही नसीब क्यों होता है?
माना कर्म सबसे ऊंचा होता है, तो फिर कर्म भी न्याय करने से क्यों चूका है?
किस बात की सजा ईश्वर तुमने मुझको दी है?
क्या इतनी जल्दी कोई बेटी पिता से बिछड़ती है?
क्या ज़रा सी रहम न आई तुझको मुझ पर,
क्या मेरा खुदा मुझसे बेहद रूठा है?
क्या करू ऐसा जो फिर से गले लगा ले मुझे,
क्या कहूं ऐसा कि पापा से फिर से मिला दे मुझे?
मेरे महादेव इतने खफा तुम क्यों हो भला?
इतना सब दिया फिर भी एक लालच सी लगती है,
सिर्फ सुख ही मिले मन ज़िद्द ये बड़ा ही करता है,
मुमकिन नहीं वापस वैसा ये मुझको पता है अब,
एक बात सुनो अब थोड़ी खुशियां भी दे देना,
ज्यादा तो नहीं बस मेरी मां को लम्बी उमर तुम दे देना।
©Shlagha
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