#राजनीति का चरित्र#
सामने कुछ हैं और पीठ के पीछे
कुछ और
धोखा हर कदम पर नया है,
यह क्या राजनीति है तुम्हारी
और इसका चरित्र क्या है?
ना जुबान की कोई कीमत है और
ना ही दीन-ईमान की
भरोसा इंसानियत से उठ गया है,
यह क्या राजनीति है तुम्हारी
और इसका चरित्र क्या है?
जीत का मतलब क्या है और
हार के हैं मायने क्या
आदमी जब नजरों से ही गिर गया है,
यह क्या राजनीति है तुम्हारी
और इसका चरित्र क्या है?
विकास से किसी को लेना क्या और
तरक्की की किसे चाह
जाति-धर्म के कुचक्र में इंसान घिर गया है,
यह क्या राजनीति है तुम्हारी
और इसका चरित्र क्या है?
©Ankur Mishra
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