रूपये में से भी आठ आने कम हो गया हुं,,,
शराब भी असर नहीं करती, इतना खत्म हो गया हूं...$
कभी रो पड़ता हूं छोटी छोटी बात पर अकेले में,,,
कभी जमीर पर चोट खाकर भी चुप हो गया हूं...$
मेरे अपने बगीचे के फूलों से नहीं बनती आज कल,,,
कांटो पे बिस्तर लगाकर कुछ घड़ी चैन से सो गया हूं...$
वक्त बेवक्त याद आती है कुछ पुराने दोस्तों की,,,
नीम के पत्ते चबाकर उनकी यादों में खो गया हूं...$
अजीब ख़सारा है ये ख्वामखाह के मोह–पाश का,,,
बुझते दिए कि आखिरी लो सा हो गया हूं...$
इतना कुछ हुआ भी नहीं है साथ मेरे,,,
फिर भी खुद पे कितना बोझ हो गया हूं...$
किताब के उस किरदार से खुद का मुकाबला कराता हूं,,,
सब जीत के भी खाली हाथ, कौन,
अरे ठाकुर मैं तो वो हो गया हूं...$
©Neil Thakur
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