ज़िंदगी के उस मोड़ पर हूँ अब मैं,
जहां न खोने का डर, न किसी से लगाव है,
दिल के सारे बंधन तोड़ चुका हूँ,
बस सुकून से जिन्दगी जीने का ख्वाब है।
न कोई ख्वाहिश, न कोई उम्मीद बाकी,
दिल हर दर्द से दूर, हर ग़म से आज़ाद है,
सिर्फ अपनी हँसी और चैन के पल,
बस इन्हीं से अब मेरी ज़िन्दगी आबाद है।
डॉ दीपक कुमार 'दीप'
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©Dr Deepak Kumar Deep
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