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New वो कागज़ की कश्ती Status, Photo, Video

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कश्ती पतवार के बिना आगे नहीं बढ़ सकती उसी तरह कलम के बिना ज्ञान का भंडार भर नहीं सकता। ©Satish Kumar Meena

#विचार  कश्ती पतवार के बिना आगे नहीं बढ़ सकती उसी तरह कलम के बिना ज्ञान का भंडार भर नहीं सकता।

©Satish Kumar Meena

कश्ती

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मैं ठहरे हुए कुएँ का वो पानी नहीं, जो थम जाऊँ.... मैं बहती नदी की वो धारा हूँ, जो साहिल से टकराकर भी, अपने सागर से मिल जाऊँ.... जिंद़गी ©vish

#कविता  मैं ठहरे हुए कुएँ का वो पानी नहीं, 

जो थम जाऊँ.... 

मैं बहती नदी की वो धारा हूँ, 

जो साहिल से टकराकर भी, 

अपने सागर से मिल जाऊँ.... 



जिंद़गी

©vish

# नदी की वो धारा

11 Love

हम वो कश्ती नहीं

441 View

हम वो कश्ती नहीं

153 View

Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं। इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से, मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं। वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ, अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं। जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में, वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं। जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल, वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर #शायरी  Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं।

इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से,
मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं।

वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ,
अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं।

जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में,
वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं।

जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल,
वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं।

©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी

14 Love

कश्ती पतवार के बिना आगे नहीं बढ़ सकती उसी तरह कलम के बिना ज्ञान का भंडार भर नहीं सकता। ©Satish Kumar Meena

#विचार  कश्ती पतवार के बिना आगे नहीं बढ़ सकती उसी तरह कलम के बिना ज्ञान का भंडार भर नहीं सकता।

©Satish Kumar Meena

कश्ती

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मैं ठहरे हुए कुएँ का वो पानी नहीं, जो थम जाऊँ.... मैं बहती नदी की वो धारा हूँ, जो साहिल से टकराकर भी, अपने सागर से मिल जाऊँ.... जिंद़गी ©vish

#कविता  मैं ठहरे हुए कुएँ का वो पानी नहीं, 

जो थम जाऊँ.... 

मैं बहती नदी की वो धारा हूँ, 

जो साहिल से टकराकर भी, 

अपने सागर से मिल जाऊँ.... 



जिंद़गी

©vish

# नदी की वो धारा

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हम वो कश्ती नहीं

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हम वो कश्ती नहीं

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Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं। इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से, मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं। वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ, अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं। जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में, वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं। जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल, वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर #शायरी  Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं।

इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से,
मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं।

वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ,
अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं।

जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में,
वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं।

जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल,
वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं।

©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी

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