White मेरा ग़म अब मुझे महसूस कम होता है,
जैसे मछली को न हो ख़बर कि समंदर क्या होता है।
वो गहराइयाँ अब मेरे हिस्से में यूँ समा गई हैं,
जिनमें दर्द का दरिया है, पर कोई असर नहीं होता है।
हर मौज का थपेड़ा अब आहिस्ता सा लगता है,
दर्द का भी अपना अलग ही सफर होता है।
जिसमें डूब कर कभी साँस थम जाने का ख़ौफ था,
अब वही ग़म मेरा साथी, मेरा हमसफ़र होता है।
अब तो अश्क भी आँखों में ठहरे रहते हैं,
दिल के हर ज़ख्म पर जैसे बेअसर होता है।
दर्द का दरिया बहता है, पर कोई तासीर नहीं,
इस दिल की वीरानी में अब कोई असर नहीं होता है।
मेरा ग़म अब मुझे महसूस कम होता है,
जैसे मछली को न हो ख़बर कि समंदर क्या होता है।
©नवनीत ठाकुर
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