White ढलती रात का मुसाफिर हूं, अकेला सफ़र करता हूं,
यादों की चादर ओढ़कर, तन्हाईयों से बातें करता हूं।
सितारों की चांदनी से कुछ उम्मीदें उधार लेता हूं,
आसमान से मोहब्बत का हर पैग़ाम चुनता हूं।
राहत की तलाश में हूं, मगर रस्ते सब वीरान हैं,
ख्वाबों की दुनिया है, मगर आँखें बहुत हैरान हैं।
चाँद भी अब मुझसे रुखसत की इजाज़त मांगता है,
इस सफ़र की मंज़िल में सिर्फ़ खामोशी का सामान है।
ढलती रात का ये सफ़र अभी जारी है,
सवेरा कब होगा, ये सवाल बाकी है।
शायद कहीं किसी मोड़ पर कोई रोशनी मिले,
या फिर कोई अपना, जो इस तन्हा सफ़र में साथ चले...
©UNCLE彡RAVAN
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here