आज, कल, परसों पे टलता जा रहा,
साईं पल-पल दिन निकलता जा रहा,
तैरने वाले गये उस पार कबके,
कुछ किनारे हाथ मलता जा रहा,
भूलने वाले भुला बैठे अदावत,
टीसने वाले को खलता जा रहा,
जम गई है बर्फ़ सी संवेदनाएं,
वेदना से ग़म पिघलता जा रहा,
कोई बच पाया नहीं इस काल से,
समय की चक्की में दलता जा रहा,
संभलकर ही कर्म करना जगत में,
भाग्य बनकर बीज फलता जा रहा,
ज्ञान दीपक से मिटे अंधियार 'गुंजन',
हृदय में सुख-शांति पलता जा रहा,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
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