Shashi Bhushan Mishra

Shashi Bhushan Mishra

I am a science graduate from UP. currently working in an Indian multinational pharma company as Sr RBM. I love poetry. I write poems and Gazals.

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उष्णता भरती लबों पर ताजगी अभिप्राय की, कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की, नींद से बोझिल नयन थे स्वप्न में खोये हुए, तभी सुमधुर मंद स्वर में किसी ने आवाज़ दी, कर तरंगित शांत जल में भर गई एहसास वो, मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की, छूटती कैसे लगी जो लत अठारह साल से, बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की, कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है, देखती आंखें रहीं पर दिलजले ने हाय की, चुस्कियां लेते हुए संवाद कायम हो गये, मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी #एक  उष्णता  भरती लबों पर  ताजगी  अभिप्राय की,  
कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की,  

नींद  से  बोझिल  नयन  थे  स्वप्न में   खोये  हुए,  
तभी  सुमधुर  मंद  स्वर में  किसी ने आवाज़ दी,  

कर  तरंगित  शांत जल में  भर गई एहसास वो,  
मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की,  

छूटती   कैसे  लगी  जो  लत  अठारह  साल से,  
बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की,  

कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है,  
देखती  आंखें  रहीं  पर  दिलजले  ने   हाय की,  

चुस्कियां    लेते    हुए    संवाद  कायम   हो गये,  
मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की,  
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
          प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#एक प्याली चाय की#

12 Love

तुम्हें पता अधिकारों का है भुला दिया कर्तव्यों को, कैसे कोई भूल पाएगा दिये हुए वक्तव्यों को, तौर तरीके बदले सबने अपने उच्च विचारों से, बदल सकेगा कोई कैसे लोगों के मंतव्यो को, मेले में प्रवास करने को संगम हुआ सितारों का, कहां से आए किसे पता लौटेंगे फिर गंतव्यों को, कर्म प्रधान धरा है इसमें फल पर कोई जोर नहीं, बदल सकेगा कौन यहां जीवन के भवतव्यों को, ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है विषय हृदय का ही 'गुंजन', द्रोणाचार्य मिले हर युग में श्रद्धावान एकलव्यों को, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#श्रद्दावान #कविता  तुम्हें पता अधिकारों का है 
भुला   दिया  कर्तव्यों  को,
कैसे   कोई   भूल  पाएगा
दिये    हुए   वक्तव्यों   को,

तौर  तरीके  बदले  सबने 
अपने  उच्च  विचारों   से,
बदल  सकेगा  कोई कैसे 
लोगों   के   मंतव्यो   को,

मेले में  प्रवास  करने को 
संगम  हुआ  सितारों का,
कहां से आए  किसे पता 
लौटेंगे  फिर  गंतव्यों को,

कर्म प्रधान  धरा है इसमें
फल पर  कोई  जोर नहीं,
बदल  सकेगा  कौन यहां
जीवन के  भवतव्यों  को,

ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है 
विषय हृदय का ही 'गुंजन',
द्रोणाचार्य मिले हर युग में 
श्रद्धावान  एकलव्यों  को, 
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
    प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#श्रद्दावान एकलव्यों को#

9 Love

New Year 2024-25 अब न कोई फलां ढिमका, हो चुका अवसान दिन का, मिट गई हस्ती तो देखा, बच न पाया एक तिनका, मिल गयी मिट्टी से मिट्टी, है अमर अवशेष किनका, नाद अनहद मधुर धुन में, बोल मीठे तिनक धिन का, चुका पाया कौन जग में, मां-पिता और गुरु ऋण का, जल प्रलय से बचे सृष्टि, किया धारण रूप हिम का, गया खाली हाथ 'गुंजन', रह गया अरमान दिल का, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #हो  New Year 2024-25 अब न कोई फलां ढिमका,
हो चुका अवसान दिन का,

मिट  गई  हस्ती तो  देखा,
बच न पाया  एक तिनका,

मिल  गयी  मिट्टी से मिट्टी,
है अमर  अवशेष किनका,

नाद  अनहद  मधुर धुन में,
बोल मीठे तिनक धिन का,

चुका  पाया  कौन  जग  में,
मां-पिता और गुरु ऋण का,

जल  प्रलय  से   बचे  सृष्टि,
किया धारण  रूप हिम का,

गया  खाली   हाथ  'गुंजन',
रह  गया अरमान  दिल का,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#हो चुका अवसान दिन का#

16 Love

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आदत से मज़बूर हुआ, गिरा तो चकनाचूर हुआ, प्रेम की संकरी गलियों में, ख़ुद से कितना दूर हुआ, गफ़लत में फुंसी समझा, बढ़ा तो फ़िर नासूर हुआ, जिस घर में था अंधियारा, जला दीप पुरनूर हुआ, चढ़ा नशा जब भक्ति का, आठों याम सुरूर हुआ, मंज़िल मिली मुसाफ़िर से, ग़म दिल से क़ाफूर हुआ, देख घटाओं की शोखी, 'गुंजन' हृदय मयूर हुआ, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी  a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आदत  से   मज़बूर  हुआ,
गिरा तो  चकनाचूर  हुआ,

प्रेम की संकरी गलियों में,
ख़ुद से  कितना  दूर हुआ,

गफ़लत में  फुंसी  समझा,
बढ़ा  तो फ़िर नासूर हुआ,

जिस घर में था अंधियारा,
जला  दीप   पुरनूर  हुआ,

चढ़ा नशा जब भक्ति का,
आठों  याम  सुरूर  हुआ,

मंज़िल मिली मुसाफ़िर से,
ग़म  दिल से क़ाफूर हुआ,

देख  घटाओं   की  शोखी,
'गुंजन' हृदय   मयूर  हुआ,
 -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#'गुंजन' हृदय मयूर हुआ#

16 Love

New Year 2024-25 दिल की किताब आंखों से पढ़ने को बेक़रार, नज़रें मिलाकर देख लो तुम मुझसे एकबार, दिल में रहा क़ायम ये भ्रम है प्यार उन्हें भी, नज़रें बचाकर देखते देखा है कई बार, सूरजमुखी सा आफ़ताब देख खिल उठे, हर सुब्ह रहा करता है इस कद्र इंतज़ार, फ़ुरसत में किसी रात चांद डूबता नहीं, मिलती तो मांग लाते हम भी चांदनी उधार, हुस्न-ओ-अदा पर फ़िदा हुए राह के पत्थर, रुक जाए मुसाफ़िर भी राह चलते कई बार, महफूज़ मेरा चैन-ओ-सुकूं उनकी फ़ज़ल से, बख़्शी ख़ुदा ने दुआ की दौलत भी बेशुमार, दीदार-ए-हुस्न मुकम्मल होता नहीं कभी, होती है नुमाइश में झलक गोया क़िस्त बार, फूलों के ईर्द-गिर्द सुनूं भ्रमर का 'गुंजन', दिल पर लगा दिया खाली है का इश्तिहार, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #दिल  New Year 2024-25 दिल की किताब आंखों से पढ़ने को बेक़रार,
नज़रें मिलाकर देख लो तुम मुझसे एकबार,

दिल में रहा  क़ायम ये भ्रम  है प्यार उन्हें भी,
नज़रें  बचाकर   देखते   देखा  है  कई  बार,

सूरजमुखी  सा  आफ़ताब  देख  खिल उठे,
हर सुब्ह  रहा करता है  इस कद्र  इंतज़ार,

फ़ुरसत  में  किसी  रात  चांद  डूबता  नहीं,
मिलती तो मांग लाते हम भी चांदनी उधार,

हुस्न-ओ-अदा पर फ़िदा हुए  राह के पत्थर,
रुक जाए मुसाफ़िर भी राह चलते कई बार,

महफूज़ मेरा चैन-ओ-सुकूं उनकी फ़ज़ल से,
बख़्शी ख़ुदा ने  दुआ की दौलत भी बेशुमार,

दीदार-ए-हुस्न   मुकम्मल  होता नहीं कभी,
होती है नुमाइश में झलक गोया क़िस्त बार,

फूलों  के  ईर्द-गिर्द  सुनूं  भ्रमर का 'गुंजन',
दिल पर लगा दिया खाली है का इश्तिहार,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
            प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#दिल पर लगा दिया#

13 Love

सही-सही दो टूक कहा, दर्दे दिल को हूक कहा, जली दूध से जुबां हमारी, पियो छाछ भी फूंक कहा, ज़ुल्म देखकर भी चुप बैठे, अभिभावक को मूक कहा, कोयल की मीठी बोली पर, पीड़ा को भी कूक कहा, सीख नहीं पाए अतीत से, ग़लती को भी चूक कहा, इन्सां की बदहाली देखी, बक्से को संदूक कहा, 'गुंजन' हुई मुहब्बत अंधी, गदहे को माशूक़ कहा, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #सही  सही-सही  दो  टूक कहा,
दर्दे  दिल  को  हूक कहा,

जली दूध से जुबां हमारी,
पियो छाछ भी फूंक कहा,

ज़ुल्म देखकर भी चुप बैठे,
अभिभावक को मूक कहा,

कोयल की मीठी बोली पर,
पीड़ा  को  भी  कूक कहा,

सीख नहीं पाए अतीत से,
ग़लती  को भी  चूक कहा,

इन्सां  की  बदहाली देखी,
बक्से   को   संदूक  कहा,

'गुंजन' हुई मुहब्बत अंधी,
गदहे  को   माशूक़  कहा,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#सही-सही दो टूक कहा#

11 Love

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