Shashi Bhushan Mishra

Shashi Bhushan Mishra

l am working as Niva Bupa health insurance Captain. I love writing poetry. Listening to music is my hobby. My message to all "Spread Love not the hatred".

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भीड़ में चलिए एहतियात रहे, कोई अपना भी संग साथ रहे, हमने देखे हैं परेशां चेहरे, हौसला है तो कुछ निजात रहे, कोई महरूम न हो शिक्षा से, सबके हाथों कलम-दवात रहे, चंद दिन के मुसाफ़िर हैं सारे, हमारे बाद भी कायनात रहे, ख़ुशी भी आती है मेहमां जैसे, ज़िन्दगी है तभी मुश्किलात रहे, दूर से हो न तसल्ली दिल को, कुछेक पल को मुलाक़ात रहे, बहुत दिनों से है पतझड़ 'गुंजन', बसंत आए तो न ये हालात रहे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#एहतियात #शायरी  भीड़ में चलिए एहतियात रहे,
कोई अपना भी संग साथ रहे,

हमने   देखे   हैं  परेशां  चेहरे,
हौसला है तो कुछ निजात रहे,

कोई महरूम न हो  शिक्षा से,
सबके हाथों कलम-दवात रहे,

चंद दिन के मुसाफ़िर हैं सारे,
हमारे बाद भी  कायनात रहे,

ख़ुशी भी आती है मेहमां जैसे,
ज़िन्दगी है तभी मुश्किलात रहे,

दूर से हो न तसल्ली दिल को,
कुछेक पल को मुलाक़ात रहे,

बहुत दिनों से है पतझड़ 'गुंजन',
बसंत आए तो न ये हालात रहे,
  --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#एहतियात रहे#

15 Love

मुहब्बत को नजर लग जाए ना ज़ालिम ज़माने का, लगा रखी है कुंडी अपने दिल के कैदखाने का, गुज़रना,घूरना,ताकना सदा ही एक खिड़की पर, दिखा सकता है तुमको रास्ता भी जेल खाने का, बड़े मायूस होगे टूटा दिल जब साथ लाओगे, जन्म भर की तड़प बेचैनियां ज्युं पागल खाने का, न दौड़ो तेज़ संकड़ा रास्ता है ये बहुत नाज़ुक, निकलना भी बहुत मुश्किल है ख़तरा जान जाने का, जो डूबे हैं निकलने का सलीका भी उन्हें आता, ये पुल है दो दिलों के बीच केवल आने-जाने का, है जिनका शौक़ हरदम खेलना ख़तरों से ही "गुंजन", उन्हें मालूम है दरिया के भी उस पार जाने का, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी #अपने  मुहब्बत को नजर लग जाए ना ज़ालिम ज़माने का,
लगा  रखी है  कुंडी  अपने  दिल  के कैदखाने का,

गुज़रना,घूरना,ताकना सदा ही एक खिड़की पर,
दिखा सकता है तुमको रास्ता भी जेल खाने का,

बड़े  मायूस  होगे  टूटा दिल  जब  साथ लाओगे,
जन्म भर की तड़प बेचैनियां ज्युं पागल खाने का,

न  दौड़ो  तेज़  संकड़ा  रास्ता  है  ये  बहुत  नाज़ुक,
निकलना भी बहुत मुश्किल है ख़तरा जान जाने का,

जो डूबे हैं  निकलने का  सलीका भी उन्हें आता,
ये पुल है दो दिलों के बीच केवल आने-जाने का,

है जिनका शौक़ हरदम खेलना ख़तरों से ही "गुंजन",
उन्हें  मालूम  है  दरिया  के  भी  उस  पार जाने का,
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#अपने दिल के कैदखाने का#

11 Love

भीड़ भगदड़ और सियासत, कर रहे हो क्यों शिकायत, ज़िन्दगी महफूज़ सबकी, ख़ुदा तुम रखना इनायत, आस्था अपनी जगह है, भीड़ से बचना हिदायत, ज़ल्दबाज़ी मत करो तुम, पास आ जाती क़यामत, गिद्ध दृष्टि ताकतीं जब, मन में लेकर इक अदावत, समझ पाते नहीं ज़ाहिल, मूर्ख भी करते बगावत, सीख लो तुम प्यार 'गुंजन', भावना मत करो आहत, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #भावना  भीड़ भगदड़ और सियासत,
कर  रहे  हो  क्यों शिकायत,

ज़िन्दगी   महफूज़   सबकी,
ख़ुदा  तुम  रखना   इनायत,

आस्था   अपनी    जगह  है,
भीड़   से   बचना   हिदायत,

ज़ल्दबाज़ी   मत  करो  तुम,
पास  आ   जाती   क़यामत,

गिद्ध   दृष्टि   ताकतीं   जब,
मन में  लेकर  इक अदावत,

समझ  पाते  नहीं   ज़ाहिल,
मूर्ख   भी   करते   बगावत,

सीख लो तुम  प्यार  'गुंजन',
भावना  मत   करो   आहत,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#भावना मत करो आहत#

13 Love

उष्णता भरती लबों पर ताजगी अभिप्राय की, कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की, नींद से बोझिल नयन थे स्वप्न में खोये हुए, तभी सुमधुर मंद स्वर में किसी ने आवाज़ दी, कर तरंगित शांत जल में भर गई एहसास वो, मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की, छूटती कैसे लगी जो लत अठारह साल से, बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की, कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है, देखती आंखें रहीं पर दिलजले ने हाय की, चुस्कियां लेते हुए संवाद कायम हो गये, मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#शायरी #एक  उष्णता  भरती लबों पर  ताजगी  अभिप्राय की,  
कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की,  

नींद  से  बोझिल  नयन  थे  स्वप्न में   खोये  हुए,  
तभी  सुमधुर  मंद  स्वर में  किसी ने आवाज़ दी,  

कर  तरंगित  शांत जल में  भर गई एहसास वो,  
मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की,  

छूटती   कैसे  लगी  जो  लत  अठारह  साल से,  
बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की,  

कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है,  
देखती  आंखें  रहीं  पर  दिलजले  ने   हाय की,  

चुस्कियां    लेते    हुए    संवाद  कायम   हो गये,  
मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की,  
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
          प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#एक प्याली चाय की#

12 Love

तुम्हें पता अधिकारों का है भुला दिया कर्तव्यों को, कैसे कोई भूल पाएगा दिये हुए वक्तव्यों को, तौर तरीके बदले सबने अपने उच्च विचारों से, बदल सकेगा कोई कैसे लोगों के मंतव्यो को, मेले में प्रवास करने को संगम हुआ सितारों का, कहां से आए किसे पता लौटेंगे फिर गंतव्यों को, कर्म प्रधान धरा है इसमें फल पर कोई जोर नहीं, बदल सकेगा कौन यहां जीवन के भवतव्यों को, ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है विषय हृदय का ही 'गुंजन', द्रोणाचार्य मिले हर युग में श्रद्धावान एकलव्यों को, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#श्रद्दावान #कविता  तुम्हें पता अधिकारों का है 
भुला   दिया  कर्तव्यों  को,
कैसे   कोई   भूल  पाएगा
दिये    हुए   वक्तव्यों   को,

तौर  तरीके  बदले  सबने 
अपने  उच्च  विचारों   से,
बदल  सकेगा  कोई कैसे 
लोगों   के   मंतव्यो   को,

मेले में  प्रवास  करने को 
संगम  हुआ  सितारों का,
कहां से आए  किसे पता 
लौटेंगे  फिर  गंतव्यों को,

कर्म प्रधान  धरा है इसमें
फल पर  कोई  जोर नहीं,
बदल  सकेगा  कौन यहां
जीवन के  भवतव्यों  को,

ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है 
विषय हृदय का ही 'गुंजन',
द्रोणाचार्य मिले हर युग में 
श्रद्धावान  एकलव्यों  को, 
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
    प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#श्रद्दावान एकलव्यों को#

9 Love

New Year 2024-25 अब न कोई फलां ढिमका, हो चुका अवसान दिन का, मिट गई हस्ती तो देखा, बच न पाया एक तिनका, मिल गयी मिट्टी से मिट्टी, है अमर अवशेष किनका, नाद अनहद मधुर धुन में, बोल मीठे तिनक धिन का, चुका पाया कौन जग में, मां-पिता और गुरु ऋण का, जल प्रलय से बचे सृष्टि, किया धारण रूप हिम का, गया खाली हाथ 'गुंजन', रह गया अरमान दिल का, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #हो  New Year 2024-25 अब न कोई फलां ढिमका,
हो चुका अवसान दिन का,

मिट  गई  हस्ती तो  देखा,
बच न पाया  एक तिनका,

मिल  गयी  मिट्टी से मिट्टी,
है अमर  अवशेष किनका,

नाद  अनहद  मधुर धुन में,
बोल मीठे तिनक धिन का,

चुका  पाया  कौन  जग  में,
मां-पिता और गुरु ऋण का,

जल  प्रलय  से   बचे  सृष्टि,
किया धारण  रूप हिम का,

गया  खाली   हाथ  'गुंजन',
रह  गया अरमान  दिल का,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#हो चुका अवसान दिन का#

16 Love

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