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New quot rami tot arbores Status, Photo, Video

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#शायरी #sad_shayari  White ज़िन्दगी एक जुआ है 
और इन्सान है यहां एक मदारी
खेल खेलती है समय यहां
उम्मीद पर टिकी है कहानी सारी
जो चल पड़ा उसे लोग सिकन्दर कहते हैं 
जो रुक गया वोह है अनाड़ी 
तरसती तन्हाई से पल को चुराकर 
सितारों में जो गुम हो जाए 
आंखों में रहकर भी जो गुमनाम कहलाए
क्या कहे ज़माना उसे 
शायद , हां उसे कहते हैं लाचारी 
क्या क्या रंग दिखाए जिंदगी यहां 
कहीं इन्द्रधनुष है 
कहीं बेरंग है यह दुनियां सारी

©Tafizul Sambalpuri
#कविता #love_shayari  White दर्द से आशना जिंदगी ये रही।
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।
जिंदगी के बहुत से अलग घाव हैं।
ये मोहब्बत वोहब्ब्त ये क्या होता है।

जंगलों में शहर सारे उग आए हैं,
और शहर में लगाए है गार्डन कोई।
मां की ममता और बाप की बापता,
ऐसे लगता है जैसे हो वार्डन कोई।

सफलता की नाहक सी इस दौर में,
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।।

ठंडे ऑफिस में गर्मागर्म चाय पर,
तितलियों को निहारे हैं भंवरे कई।
गांव में घर भले बन न पाया कभी,
पर शहर में है किराए पे कमरे कई।

भोग को योग संयोग कहते है सब,
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।।

बच्चे ले के जमीं को शहर आ गए,
सपने बचपन और गांव घर खा गए।
चार पहियों पर दौड़ती भागती,
तेज रफ्तार से ये सफ़र खा गए।

रिश्ते विस्ते पुराने ख्यालात हैं।
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।

भूख आंगन में जब लोटने लगती है।
सावनो का ये पानी उतर जाता है।
खाट पर खांसता बाप छाती पकड़,
बिन दवाई के ही यार मर जाता है।

लड़कियां दौलतों से बियाहने लगी
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।

निर्भय चौहान (निरपुरिया )

©निर्भय चौहान
#शायरी #sad_shayari  White दर्द से  कुछ मुझे हासिल नही है।
और खुशियां मिरे काबिल नही है।।

मैंने जिसको दिया है दिल अपना। 
उसके सीने  में कोई दिल नहीं है।।

इब्तदा है कि तु भी मरता है।
इंतिहा है कि ये मुश्किल नहीं है।।

आइना देख के फिर मुझसे कहो । 
अक्स मेरा कहीं शामिल नहीं है ।।

इश्क में सुस्त हुआ चाहता है 
वक्त मेरा कोई काहिल नहीं है।।

शहर में माहिया जो गा रहा है
कोई शायर है जाहिल नहीं है।।

फिर किसी रोज गजल कह लेना ।
यार ये यार कि  महफिल नहीं है।।

क्या समझते हो फना होगा क्या 
नीर का दिल कोई बाबिल नहीं है।। 

निर्भय चौहान

©निर्भय चौहान

White जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। उसने साथी चुने रूठने वाले सब उसने तारे चुने टूटने वाले सब। उसने चाहा जो कम है वो ज्यादा बने। राजा रानी बने न कि प्यादा बने। बस यही सोच कर आगे बढ़ता रहा, बस यही सोच खुद को घटाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। एक जमाना लगा भूलने में उसे, याद जिसको जमाने से छुप के किया। आज नाकारा नामर्द सुनना पड़ा, रात दिन जो बुलाती थी मेरे पिया। दौलतों के अंधेरे ये घर खा गए, देहरी पे दिया वो जलाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। एक माली के आंगन के दो फूल थे, फूल दोनों बहुत उसको मकबूल थे। एक कांटा भी उस बाग में था पला। फूल का चाहता रात दिन था भला।। चार कांधों का था बोझ पर बाबला, खुद को तन्हा ही कांधा लगाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। निर्भय चौहान(निरपुरिया) ©निर्भय चौहान

#कविता #sad_shayari  White जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

उसने साथी चुने रूठने वाले सब
उसने तारे चुने टूटने वाले सब।
उसने चाहा जो कम है वो ज्यादा बने।
राजा रानी बने न कि प्यादा बने।
बस यही सोच कर आगे बढ़ता रहा,
बस यही सोच खुद को घटाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

एक जमाना लगा भूलने में उसे,
याद जिसको जमाने से छुप के किया।
आज नाकारा नामर्द सुनना पड़ा,
रात दिन जो बुलाती थी मेरे पिया।
दौलतों के अंधेरे ये घर खा गए,
देहरी पे दिया वो जलाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

एक माली के आंगन के दो फूल थे,
फूल दोनों बहुत उसको मकबूल थे।
एक कांटा भी उस बाग में था पला।
फूल का चाहता रात दिन था भला।।

चार कांधों का था बोझ पर बाबला,
खुद को तन्हा ही कांधा लगाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

निर्भय चौहान(निरपुरिया)

©निर्भय चौहान

#sad_shayari @Vishalkumar "Vishal" @Kumar Shaurya करम गोरखपुरिया @Nazar @Madhusudan Shrivastava

13 Love

#कविता #rainy_season  White मेरी सुनी कलाई यूं ही छोड़ कर,
तुम जाना पिया ये वचन तोड़ कर। 
जिंदगी के हरे सावनों की कसम
मैं भी चल दूंगी तुमसे ये मुंह मोड़ कर।।

साथ दरिया के बहते किनारे ढहे,
देख कर चांद फिर बादलों से कहे,
प्रीत की रीत जग से निराली भई,
फूल डाली पे सूखे है जग छोड़ कर।

एक पतंगे को भाई है बाती कोई,
ऐसा लगता है अपना है साथी कोई,
रात होते ही जलने लगे है दिया
आए फिर से पतंगा नया दौड़ कर।

तुम चलोगे जहां मैं चलूंगी वहां
तुम हो नीला समंदर, मैं हूं आसमां 
हर तरफ मैं ही तेरा किनारा बनूं
इस तरफ कर तू चाहे उधर छोर कर।।

निर्भय चौहान

©निर्भय निरपुरिया

White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं। बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं। जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे। सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।। कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती। कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति। हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं। निर्भय चौहान ©निर्भय निरपुरिया

#कविता #moon_day  White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं।
बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं।

जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे।
सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।।

कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती।
कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति।
हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं।

निर्भय चौहान

©निर्भय निरपुरिया
#शायरी #sad_shayari  White ज़िन्दगी एक जुआ है 
और इन्सान है यहां एक मदारी
खेल खेलती है समय यहां
उम्मीद पर टिकी है कहानी सारी
जो चल पड़ा उसे लोग सिकन्दर कहते हैं 
जो रुक गया वोह है अनाड़ी 
तरसती तन्हाई से पल को चुराकर 
सितारों में जो गुम हो जाए 
आंखों में रहकर भी जो गुमनाम कहलाए
क्या कहे ज़माना उसे 
शायद , हां उसे कहते हैं लाचारी 
क्या क्या रंग दिखाए जिंदगी यहां 
कहीं इन्द्रधनुष है 
कहीं बेरंग है यह दुनियां सारी

©Tafizul Sambalpuri
#कविता #love_shayari  White दर्द से आशना जिंदगी ये रही।
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।
जिंदगी के बहुत से अलग घाव हैं।
ये मोहब्बत वोहब्ब्त ये क्या होता है।

जंगलों में शहर सारे उग आए हैं,
और शहर में लगाए है गार्डन कोई।
मां की ममता और बाप की बापता,
ऐसे लगता है जैसे हो वार्डन कोई।

सफलता की नाहक सी इस दौर में,
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।।

ठंडे ऑफिस में गर्मागर्म चाय पर,
तितलियों को निहारे हैं भंवरे कई।
गांव में घर भले बन न पाया कभी,
पर शहर में है किराए पे कमरे कई।

भोग को योग संयोग कहते है सब,
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।।

बच्चे ले के जमीं को शहर आ गए,
सपने बचपन और गांव घर खा गए।
चार पहियों पर दौड़ती भागती,
तेज रफ्तार से ये सफ़र खा गए।

रिश्ते विस्ते पुराने ख्यालात हैं।
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।

भूख आंगन में जब लोटने लगती है।
सावनो का ये पानी उतर जाता है।
खाट पर खांसता बाप छाती पकड़,
बिन दवाई के ही यार मर जाता है।

लड़कियां दौलतों से बियाहने लगी
ये मोहब्बत वोहब्बत ये क्या होता है।

निर्भय चौहान (निरपुरिया )

©निर्भय चौहान
#शायरी #sad_shayari  White दर्द से  कुछ मुझे हासिल नही है।
और खुशियां मिरे काबिल नही है।।

मैंने जिसको दिया है दिल अपना। 
उसके सीने  में कोई दिल नहीं है।।

इब्तदा है कि तु भी मरता है।
इंतिहा है कि ये मुश्किल नहीं है।।

आइना देख के फिर मुझसे कहो । 
अक्स मेरा कहीं शामिल नहीं है ।।

इश्क में सुस्त हुआ चाहता है 
वक्त मेरा कोई काहिल नहीं है।।

शहर में माहिया जो गा रहा है
कोई शायर है जाहिल नहीं है।।

फिर किसी रोज गजल कह लेना ।
यार ये यार कि  महफिल नहीं है।।

क्या समझते हो फना होगा क्या 
नीर का दिल कोई बाबिल नहीं है।। 

निर्भय चौहान

©निर्भय चौहान

White जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। उसने साथी चुने रूठने वाले सब उसने तारे चुने टूटने वाले सब। उसने चाहा जो कम है वो ज्यादा बने। राजा रानी बने न कि प्यादा बने। बस यही सोच कर आगे बढ़ता रहा, बस यही सोच खुद को घटाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। एक जमाना लगा भूलने में उसे, याद जिसको जमाने से छुप के किया। आज नाकारा नामर्द सुनना पड़ा, रात दिन जो बुलाती थी मेरे पिया। दौलतों के अंधेरे ये घर खा गए, देहरी पे दिया वो जलाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। एक माली के आंगन के दो फूल थे, फूल दोनों बहुत उसको मकबूल थे। एक कांटा भी उस बाग में था पला। फूल का चाहता रात दिन था भला।। चार कांधों का था बोझ पर बाबला, खुद को तन्हा ही कांधा लगाता रहा। जिंदगी के सफर में भला आदमी, दोष का बोझ सर पे उठाता रहा। मसखरी हो गई दर्द का फलसफा, उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।। निर्भय चौहान(निरपुरिया) ©निर्भय चौहान

#कविता #sad_shayari  White जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

उसने साथी चुने रूठने वाले सब
उसने तारे चुने टूटने वाले सब।
उसने चाहा जो कम है वो ज्यादा बने।
राजा रानी बने न कि प्यादा बने।
बस यही सोच कर आगे बढ़ता रहा,
बस यही सोच खुद को घटाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

एक जमाना लगा भूलने में उसे,
याद जिसको जमाने से छुप के किया।
आज नाकारा नामर्द सुनना पड़ा,
रात दिन जो बुलाती थी मेरे पिया।
दौलतों के अंधेरे ये घर खा गए,
देहरी पे दिया वो जलाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

एक माली के आंगन के दो फूल थे,
फूल दोनों बहुत उसको मकबूल थे।
एक कांटा भी उस बाग में था पला।
फूल का चाहता रात दिन था भला।।

चार कांधों का था बोझ पर बाबला,
खुद को तन्हा ही कांधा लगाता रहा।

जिंदगी के सफर में भला आदमी,
दोष का बोझ सर पे उठाता रहा।
मसखरी हो गई दर्द का फलसफा,
उमर भर वो सदा मुस्कुराता रहा।।

निर्भय चौहान(निरपुरिया)

©निर्भय चौहान

#sad_shayari @Vishalkumar "Vishal" @Kumar Shaurya करम गोरखपुरिया @Nazar @Madhusudan Shrivastava

13 Love

#कविता #rainy_season  White मेरी सुनी कलाई यूं ही छोड़ कर,
तुम जाना पिया ये वचन तोड़ कर। 
जिंदगी के हरे सावनों की कसम
मैं भी चल दूंगी तुमसे ये मुंह मोड़ कर।।

साथ दरिया के बहते किनारे ढहे,
देख कर चांद फिर बादलों से कहे,
प्रीत की रीत जग से निराली भई,
फूल डाली पे सूखे है जग छोड़ कर।

एक पतंगे को भाई है बाती कोई,
ऐसा लगता है अपना है साथी कोई,
रात होते ही जलने लगे है दिया
आए फिर से पतंगा नया दौड़ कर।

तुम चलोगे जहां मैं चलूंगी वहां
तुम हो नीला समंदर, मैं हूं आसमां 
हर तरफ मैं ही तेरा किनारा बनूं
इस तरफ कर तू चाहे उधर छोर कर।।

निर्भय चौहान

©निर्भय निरपुरिया

White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं। बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं। जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे। सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।। कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती। कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति। हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं। निर्भय चौहान ©निर्भय निरपुरिया

#कविता #moon_day  White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं।
बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं।

जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे।
सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।।

कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती।
कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति।
हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं।

निर्भय चौहान

©निर्भय निरपुरिया
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