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New चौकीदारी की नौकरी Status, Photo, Video

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White मोहब्बत और नौकरी में कोई फर्क नहीं ! इंसान करता रहेगा, रोता रहेगा पर छोड़ेगा नहीं !! ©Stƴɭɩsʜ Tɩŋkʋ

#मोटिवेशनल #subichar #advice  White मोहब्बत और नौकरी में कोई फर्क नहीं ! इंसान करता रहेगा, रोता रहेगा पर छोड़ेगा नहीं !!

©Stƴɭɩsʜ Tɩŋkʋ

मोहब्बत और नौकरी #advice&Motivation #subichar

14 Love

White नौकरी बजानी होती है सहाब, झोला उठाकर निकल जाता हूं लौट आता निस्तेज मै क्या करूं, पेट बडा हो गया है मेरा सब डकार जाता है रद्दी हो या बेकार, नौकरी बजानी होती है सहाब पकने लगे है अब बाल मेरे , सब पता है फिर भी चलायमान तन मन, रूकता कहां है थमता कहां है हा ठिकाना भी जानता हूं साठ के बाद का वही पिछले का पुराना पलंग , गंदी तकिया और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना। हास्यपद है फिर भी नौकरी बजानी पडती है सहाब। ©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

#मोटिवेशनल  White नौकरी बजानी होती है सहाब,
झोला उठाकर निकल जाता हूं 
लौट आता निस्तेज 
मै क्या करूं,
पेट बडा हो गया है मेरा 
सब डकार जाता है 
रद्दी हो या बेकार,
नौकरी बजानी होती है सहाब
पकने लगे है अब बाल मेरे ,
सब पता है फिर भी चलायमान तन मन,
रूकता कहां है थमता कहां है 
हा ठिकाना भी जानता हूं 
साठ के बाद का 
वही पिछले का पुराना पलंग ,
गंदी तकिया  और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना।
हास्यपद है फिर भी 
नौकरी बजानी पडती है सहाब।

©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

नौकरी बजानी होती है सहाब

11 Love

White मोहब्बत और नौकरी में कोई फर्क नहीं ! इंसान करता रहेगा, रोता रहेगा पर छोड़ेगा नहीं !! ©Stƴɭɩsʜ Tɩŋkʋ

#मोटिवेशनल #subichar #advice  White मोहब्बत और नौकरी में कोई फर्क नहीं ! इंसान करता रहेगा, रोता रहेगा पर छोड़ेगा नहीं !!

©Stƴɭɩsʜ Tɩŋkʋ

मोहब्बत और नौकरी #advice&Motivation #subichar

14 Love

White नौकरी बजानी होती है सहाब, झोला उठाकर निकल जाता हूं लौट आता निस्तेज मै क्या करूं, पेट बडा हो गया है मेरा सब डकार जाता है रद्दी हो या बेकार, नौकरी बजानी होती है सहाब पकने लगे है अब बाल मेरे , सब पता है फिर भी चलायमान तन मन, रूकता कहां है थमता कहां है हा ठिकाना भी जानता हूं साठ के बाद का वही पिछले का पुराना पलंग , गंदी तकिया और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना। हास्यपद है फिर भी नौकरी बजानी पडती है सहाब। ©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

#मोटिवेशनल  White नौकरी बजानी होती है सहाब,
झोला उठाकर निकल जाता हूं 
लौट आता निस्तेज 
मै क्या करूं,
पेट बडा हो गया है मेरा 
सब डकार जाता है 
रद्दी हो या बेकार,
नौकरी बजानी होती है सहाब
पकने लगे है अब बाल मेरे ,
सब पता है फिर भी चलायमान तन मन,
रूकता कहां है थमता कहां है 
हा ठिकाना भी जानता हूं 
साठ के बाद का 
वही पिछले का पुराना पलंग ,
गंदी तकिया  और वो अंतिम पथ का प्रथम कोना।
हास्यपद है फिर भी 
नौकरी बजानी पडती है सहाब।

©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज

नौकरी बजानी होती है सहाब

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