White अक्सर यूं तुम आया करते हो मेरे हृदय से निकलकर मेरे मानस पटल पर उकेरते हो अपनी धुंधली छवियां और ललचा जाते हो मेरे मन को और मैं पगलाई अकुलाई सी तुम्हें ढूंढती हूं यहां वहां न जाने कहां कहां।
यूं तो मैंने सजा रखी है तुम्हारी छवि मेरे राम सी, जैसे शीतल हैं मेरे राम वैसे शीतल हो तुम।
चंद्र से मुख पर सूर्य सा तेज भी रखना तुम।
देखना मुझे वैसे ही जैसे देखा था वैदेही को रघुवर ने पहली बार वन में .....मोहित हो जाना एक सुंदर फूल पर भ्रमर जैसे। और मैं चकित हो जाऊं देखकर तुम्हें जैसे देखूं अपने राम को, भरकर अपने नेत्रों में अश्रु जल पूरी हो जाए हर वांछा
तुमसे कह न सकूं कि रूक जाओ इसी क्षण अनंत काल के लिए।
मैं उस क्षण तोड़ कर सारे बंधनों को बस अनंत तक होना चाहूं तुम्हारी
यही वर मैं भी मांगू मां गौरी से कि यही वर हो मेरा।
©Divya Shrotriya
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