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New संयोग श्रृंगार रस की कविता Status, Photo, Video

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White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।। मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी। सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी। कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।। जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता। तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था। वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।। ©शुभम मिश्र बेलौरा

#शायरी #good_night  White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, 
वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। 
बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। 
समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।।

मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी।
सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी।
कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। 
खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।।

जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता।
तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। 
मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था।
वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।।

©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night श्रृंगार

14 Love

#कविता

कविता Islam प्रेम कविता कुमार विश्वास की कविता देशभक्ति कविता

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White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।। मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी। सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी। कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।। जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता। तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था। वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।। ©शुभम मिश्र बेलौरा

#शायरी #good_night  White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, 
वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। 
बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। 
समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।।

मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी।
सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी।
कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। 
खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।।

जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता।
तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। 
मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था।
वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।।

©शुभम मिश्र बेलौरा

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कविता Islam प्रेम कविता कुमार विश्वास की कविता देशभक्ति कविता

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