शुभम मिश्र बेलौरा

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White घर के कोने कोने में ,मोबाइल सब पर हावी है, न ही अंकुश रहा किसी पर,और न कोई चाभी है। शर्म हया की बात न करिये,आधुनिकता यूं आई है, बेटे संग रोमांस दिखाकर मम्मी रील बनाई है। कांट्रैक्ट में बंधे दिख रहे सम्बन्धों के तार,  घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार, बचा लो अपना अब परिवार-2 ©शुभम मिश्र बेलौरा

#कविता #good_night  White घर के कोने कोने में ,मोबाइल सब पर हावी है,
न ही अंकुश रहा किसी पर,और न कोई चाभी है।
शर्म हया की बात न करिये,आधुनिकता यूं आई है,
बेटे संग रोमांस दिखाकर मम्मी रील बनाई है।
कांट्रैक्ट में बंधे दिख रहे सम्बन्धों के तार,  
घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार, 
बचा लो अपना अब परिवार-2

©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night घर

20 Love

green-leaves घर के कोने कोने में ,मोबाइल सब पर हावी है, न ही अंकुश रहा किसी पर,और न कोई चाभी है। शर्म हया की बात न करिये,आधुनिकता यूं आई है, बेटे संग रोमांस दिखाकर मम्मी रील बनाई है। कांट्रैक्ट में बंधे दिख रहे सम्बन्धों के तार, घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार, बचा लो अपना अब परिवार-2 ©शुभम मिश्र बेलौरा

#कविता #GreenLeavespo  green-leaves घर के कोने कोने में ,मोबाइल सब पर हावी है,
न ही अंकुश रहा किसी पर,और न कोई चाभी है।
शर्म हया की बात न करिये,आधुनिकता यूं आई है,
बेटे संग रोमांस दिखाकर मम्मी रील बनाई है।
कांट्रैक्ट में बंधे दिख रहे सम्बन्धों के तार,  
घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार, 
बचा लो अपना अब परिवार-2

©शुभम मिश्र बेलौरा

White बचा लो अपना अब परिवार -2 घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां बुजुर्गों की इज्जत थी निगरानी करते थे, डांट ठहाके देते और बातें मर्दानी करते थे। जिंदा रहना बची जिंदगी उनकी इसी जमाने में, सारी अहमियत तौल दी गई थाली भर के खाने में। दादी दादा से सजा हुआ अब दिखता नहीं घर द्वार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 जहां एक भाई भाई के खातिर राज्य था छोड़ा, सदियों में मां बेटे का रिश्ता न किसी ने तोड़ा। वहीं एक कमरे की लड़ाई गोली तक चलवाती है, अपनी स्वतंत्रता के खातिर मां बेटे को खा जाती है। कर्तव्यों को छोड़ सभी को दिखता बस अधिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 भारत की सभ्यता संस्कृति इसमें रही समाई, इसे मिटाने की साज़िश है दुनिया की सच्चाई। प्रेम जगाने वाला दीपक फिर से यहां जलाओ, बच्चों को शिक्षा के संग संग संस्कार सिखलाओ। इसी का करते दुनिया वाले सबसे पहले शिकार, घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। बचा लो अपना अब परिवार -2 ©शुभम मिश्र बेलौरा

#कविता #good_night  White बचा लो अपना अब परिवार -2
घरवालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार।
बचा लो अपना अब परिवार -2
जहां बुजुर्गों की इज्जत थी निगरानी करते थे, 
डांट ठहाके देते और बातें मर्दानी करते थे। 
जिंदा रहना बची जिंदगी उनकी इसी जमाने में, 
सारी अहमियत तौल दी गई थाली भर के खाने में। 
दादी दादा से सजा हुआ अब दिखता नहीं घर द्वार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2
जहां एक भाई भाई के खातिर राज्य था छोड़ा,
सदियों में मां बेटे का रिश्ता न किसी ने तोड़ा।
वहीं एक कमरे की लड़ाई गोली तक चलवाती है, 
अपनी स्वतंत्रता के खातिर मां बेटे को खा जाती है। 
कर्तव्यों को छोड़ सभी को दिखता बस अधिकार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2
भारत की सभ्यता संस्कृति इसमें रही समाई,
इसे मिटाने की साज़िश है दुनिया की सच्चाई। 
प्रेम जगाने वाला दीपक फिर से यहां जलाओ,
बच्चों को शिक्षा के संग संग संस्कार सिखलाओ। 
इसी का करते दुनिया वाले सबसे पहले शिकार, 
घर वालों में खत्म हो रहा अपनापन और प्यार। 
बचा लो अपना अब परिवार -2

©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night परिवार

11 Love

White Good morning से आती सुबह और Good evening से जाती शाम, धीरे-2 हो रहा हूँ फिर से अंग्रेजियत का गुलाम। अपनी परम्पराओं पर शर्मिंदगी जताई जा रही, ये अनपढ़ों की भाषा है, हिन्दी बताई जा रही। उसी का दर्द उसकी निराशा खोलना चाहता हूँ, सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूँ।। ये पश्चिम तेरी हर चालाकी मैं पहचान जाता हूँ, क्या,क्यूं और कब कर रहे, सब जान जाता हूँ। अफसोस! सब जानकर भी सच्चाई से कोसों दूर हूँ, मैं भी नौकर बनने, नौकरी करने पर मजबूर हूँ। शक्कर नहीं है शरबत मे बताशा घोलना चाहता हूँ, सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूं।। प्रेम की गहराई को बस काम बनाना सिखाया, सुन्दरता के नाम पर अश्लीलता नग्नता दिखाया। हां! तुम जो जो चाहते थे वो सब खाने लगे हैं, आधुनिकता की आग में खुद को जलाने लगे हैं। तुम्हारी जीत अपनी हताशा तौलना चाहता हूँ, सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूं।। ©शुभम मिश्र बेलौरा

#कविता #good_night  White Good morning से आती सुबह और Good evening से जाती शाम, 
धीरे-2 हो रहा हूँ  फिर से अंग्रेजियत का गुलाम।
अपनी परम्पराओं पर शर्मिंदगी जताई जा रही,
ये अनपढ़ों की भाषा है, हिन्दी बताई जा रही।
उसी का दर्द उसकी निराशा खोलना चाहता हूँ,
सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूँ।।

ये पश्चिम तेरी हर चालाकी मैं पहचान जाता हूँ,
क्या,क्यूं और कब कर रहे, सब जान जाता हूँ।
अफसोस! सब जानकर भी सच्चाई से कोसों दूर हूँ,
मैं भी नौकर बनने, नौकरी करने पर मजबूर हूँ। 
शक्कर नहीं है शरबत मे बताशा घोलना चाहता हूँ, 
सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूं।।

प्रेम की गहराई को बस काम बनाना सिखाया,
सुन्दरता के नाम पर अश्लीलता नग्नता दिखाया।
हां! तुम जो जो चाहते थे वो सब खाने लगे हैं,
आधुनिकता की आग में खुद को जलाने लगे हैं।
तुम्हारी जीत अपनी हताशा तौलना चाहता हूँ,
सुुनो,मैं अपने गांव की भाषा बोलना चाहता हूं।।

©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night English vs Hindi

9 Love

White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।। मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी। सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी। कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।। जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता। तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था। वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।। ©शुभम मिश्र बेलौरा

#शायरी #good_night  White बगल सीसे में दिखती थी,जो फूलों में महकती थी, 
वो कैसे खो गई तस्वीर जो धड़कन में बसती थी। 
बड़ा बेचैन होता मन ,वो पल जब याद करता हूं। 
समंदर के लहर जैसे मेरे बाहों में हंसती थी।।

मैं पहले सोचता था रात में इक रात आयेगी।
सजेगा घर उसी का और मेरी बारात आयेगी।
कभी सोचा न था दुनिया में ऐसे दिन भी देखूंगा। 
खिले मौसम में आंखों से मेरे बरसात आयेगी।।

जो मुझपे प्यार का शबनम परोसा ही नहीं होता।
तेरे जाने पे मुझको ग़म जरा सा भी नहीं होता। 
मैं जिससे प्यार करता था जिसे अपना समझता था।
वो नफरत भी है कर सकती भरोसा ही नहीं होता।।

©शुभम मिश्र बेलौरा

#good_night श्रृंगार

14 Love

White किसी की याद के आंसू किसी के गम की रातें हैं। बताऊं क्या तुम्हें हर बार? ये चाहत की बातें हैं। लगी लम्बी कतारें कुछ दिनों से पास में मेरे, तुम्हारी याद जब आती सभी को भूल जाते हैं। ©शुभम मिश्र बेलौरा

#शायरी #sad_quotes  White किसी की याद के आंसू किसी के गम की रातें हैं।
बताऊं क्या तुम्हें हर बार? ये चाहत की बातें हैं।
लगी लम्बी कतारें कुछ दिनों से पास में मेरे,
तुम्हारी याद जब आती सभी को भूल जाते हैं।

©शुभम मिश्र बेलौरा

#sad_quotes प्यार

13 Love

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