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White कल ख्वाब में देखा पानी को। बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर। रुके-रुके, बादल-बादल। नदियाँ सारी झील-झील। स्थिर हुए निर्झर-निर्झर। जल की अस्थिरता खत्म हुई वेगहीन हुई धाराएं, उद्गमित होने लगी धारणाएं। यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है? जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं? प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते। फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#कविता #Sad_Status #Rituraj #rishte  White कल ख्वाब में देखा पानी को।
बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर।
रुके-रुके, बादल-बादल।
नदियाँ सारी झील-झील।
स्थिर हुए निर्झर-निर्झर।
जल की अस्थिरता खत्म हुई
वेगहीन हुई धाराएं,
उद्गमित होने लगी धारणाएं।
यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है?
जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं?
प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते।
फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

एक सा कफ़न देखा शमशान घाट पर जाकर मैंने, मुर्दों का ऐसा हाल देखा। अमीर - गरीब दोनों पर मैंने, पड़ा एक सा कफ़न देखा। वही विधि थी वही क्रिया थी, ऐसा मैंने अनुशासन देखा। भेद-भाव की जगह नहीं थी, ईश का ऐसा विधान देखा। पाँच तत्वों में विभक्त हो गये, उस काया को मिटते देखा। जो वे अपने तब कर्म बो गये, उन कर्मों पर भी रोते देखा। इस कलयुगी जीवन में यहाँ, लोगों को है बिखरते देखा। ऐसी नहीं कोई जगह जहाँ, उसको है मुस्कराते देखा। मौत के दर्शन तब पाकर उसका, जीवन से नाता टूटते देखा। क्या मतलब है अमीर गरीब का, अगर एक सा कफ़न देखा। ............................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

#एक_सा_कफ़न_देखा #कविता  एक सा कफ़न देखा

शमशान घाट पर जाकर मैंने,
मुर्दों का ऐसा हाल देखा।
अमीर - गरीब दोनों पर मैंने,
पड़ा एक सा कफ़न देखा।

वही विधि थी वही क्रिया थी,
ऐसा मैंने अनुशासन देखा।
भेद-भाव की जगह नहीं थी,
ईश का ऐसा विधान देखा।

पाँच तत्वों में विभक्त हो गये,
उस काया को मिटते देखा।
जो वे अपने तब कर्म बो गये,
उन कर्मों पर भी रोते देखा।

इस कलयुगी जीवन में यहाँ,
लोगों को है बिखरते देखा।
ऐसी नहीं कोई जगह जहाँ,
उसको है मुस्कराते देखा।

मौत के दर्शन तब पाकर उसका,
जीवन से नाता टूटते देखा।
क्या मतलब है अमीर गरीब का,
अगर एक सा कफ़न देखा।
............................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

White कल ख्वाब में देखा पानी को। बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर। रुके-रुके, बादल-बादल। नदियाँ सारी झील-झील। स्थिर हुए निर्झर-निर्झर। जल की अस्थिरता खत्म हुई वेगहीन हुई धाराएं, उद्गमित होने लगी धारणाएं। यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है? जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं? प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते। फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#कविता #Sad_Status #Rituraj #rishte  White कल ख्वाब में देखा पानी को।
बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर।
रुके-रुके, बादल-बादल।
नदियाँ सारी झील-झील।
स्थिर हुए निर्झर-निर्झर।
जल की अस्थिरता खत्म हुई
वेगहीन हुई धाराएं,
उद्गमित होने लगी धारणाएं।
यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है?
जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं?
प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते।
फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

एक सा कफ़न देखा शमशान घाट पर जाकर मैंने, मुर्दों का ऐसा हाल देखा। अमीर - गरीब दोनों पर मैंने, पड़ा एक सा कफ़न देखा। वही विधि थी वही क्रिया थी, ऐसा मैंने अनुशासन देखा। भेद-भाव की जगह नहीं थी, ईश का ऐसा विधान देखा। पाँच तत्वों में विभक्त हो गये, उस काया को मिटते देखा। जो वे अपने तब कर्म बो गये, उन कर्मों पर भी रोते देखा। इस कलयुगी जीवन में यहाँ, लोगों को है बिखरते देखा। ऐसी नहीं कोई जगह जहाँ, उसको है मुस्कराते देखा। मौत के दर्शन तब पाकर उसका, जीवन से नाता टूटते देखा। क्या मतलब है अमीर गरीब का, अगर एक सा कफ़न देखा। ............................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

#एक_सा_कफ़न_देखा #कविता  एक सा कफ़न देखा

शमशान घाट पर जाकर मैंने,
मुर्दों का ऐसा हाल देखा।
अमीर - गरीब दोनों पर मैंने,
पड़ा एक सा कफ़न देखा।

वही विधि थी वही क्रिया थी,
ऐसा मैंने अनुशासन देखा।
भेद-भाव की जगह नहीं थी,
ईश का ऐसा विधान देखा।

पाँच तत्वों में विभक्त हो गये,
उस काया को मिटते देखा।
जो वे अपने तब कर्म बो गये,
उन कर्मों पर भी रोते देखा।

इस कलयुगी जीवन में यहाँ,
लोगों को है बिखरते देखा।
ऐसी नहीं कोई जगह जहाँ,
उसको है मुस्कराते देखा।

मौत के दर्शन तब पाकर उसका,
जीवन से नाता टूटते देखा।
क्या मतलब है अमीर गरीब का,
अगर एक सा कफ़न देखा।
............................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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