ऋतुराज पपनै

ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

स्वयं की निर्मित छंद हूँ मैं। ऋतुराज हूँ मैं बसंत हूँ मैं।।

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White थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है। हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#धोखेबाज_दोस्त #दिसम्बर #शायरी  White  थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है।
हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है। हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#धोखेबाज_दोस्त #धोखेबाज_साल #शायरी  थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है।
हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

दो अक्षर की सीता माता,दो अक्षर के राम। दो दो के संयोजन से ही,बनते हैं हनुमान।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#शायरी #hanumanji  दो अक्षर की सीता माता,दो अक्षर के राम।
दो दो के संयोजन से ही,बनते हैं हनुमान।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#hanumanji RRp

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White पैर जमीं पर भी होकर, अभिमान रहता है। ऊपर ईश्वर नीचे वाला खुद,खुद को भगवान कहता है। इक दिन गिर पड़ कर एक जुबान कहता है। कि सर के ऊपर ही आसमान रहता है। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#कविता #sad_quotes  White पैर जमीं पर भी होकर,
अभिमान रहता है।
ऊपर ईश्वर
नीचे वाला खुद,खुद को भगवान कहता है।
इक दिन गिर पड़ कर 
एक जुबान कहता है।
कि सर के ऊपर ही आसमान रहता है।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#sad_quotes

16 Love

Unsplash दीमक कुतरता नहीं जैसे जिल्द को, बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देता है किताबों को। चिन्ता कुतरती नहीं है वैसे ही जिस्म को, बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देती है आदमी को, सपनों को या ख्वाबों को। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#चिन्ता #ख्वाब #कविता #मंजिल  Unsplash दीमक कुतरता नहीं जैसे जिल्द को,
बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देता है किताबों को।
चिन्ता कुतरती नहीं है वैसे ही जिस्म को,
बस अन्दर ही अन्दर खत्म कर देती है आदमी को, 
सपनों को या ख्वाबों को।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

Unsplash एक वृक्ष अलग-अलग शाखाएं शाखाओं का वृक्ष से अटूट सम्बन्ध है। क्योंकि शाखाएं उगती हैं वृक्ष पर से ही। पर शाखाओं पर नहीं शाखाएं, एक वृक्ष की अलग-अलग शाखाएं अलग-अलग दिशाओं में जा रही हैं जो, उन शाखाओं पर भी उगी हुई, छोटी-छोटी टहनियां भी, ढूंढेंगी जब अपनी दिशाएं शाखाएं पाना चाहेंगी झुरमुट तब फिर से बसंत आएगा जब। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#एक_वृक्ष #कविता  Unsplash एक वृक्ष 
अलग-अलग शाखाएं
शाखाओं का वृक्ष  से अटूट सम्बन्ध है।
क्योंकि शाखाएं उगती हैं वृक्ष पर से ही।
पर शाखाओं पर नहीं शाखाएं,
एक वृक्ष की अलग-अलग शाखाएं
अलग-अलग दिशाओं में जा रही हैं जो,
उन शाखाओं पर भी उगी हुई,
 छोटी-छोटी टहनियां भी,
ढूंढेंगी जब अपनी दिशाएं
शाखाएं पाना चाहेंगी झुरमुट तब
फिर से बसंत आएगा जब।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"
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