ऋतुराज पपनै

ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

स्वयं की निर्मित छंद हूँ मैं। ऋतुराज हूँ मैं बसंत हूँ मैं।।

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White कान्हा तेरे प्रीत को तरसी, भइ बाँवरी पीर। प्रीत जुरी मैं माला सी, और टूटी तो जंजीर।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#ऋतुराज #भक्ति #मीरा  White कान्हा तेरे प्रीत को तरसी,
भइ बाँवरी पीर।
प्रीत जुरी मैं माला सी,
और टूटी तो जंजीर।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का आकांक्षाओं और आशाओं का। भावनाओं में विरक्ति आत्मा है परखती। देह जल रहा विकारों से मन जल रहा विचारों से। अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये। मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये। तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ? मन में फिर बैराग श्रेष्ठ। मोह-माया का भीषण छल भौतिकता का कोलाहल। उन सब में इक आग है श्रेष्ठ जलती चिता की राख है श्रेष्ठ। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#ऋतुराज_पपनै #कविता #SunSet  सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का
आकांक्षाओं और आशाओं का।
भावनाओं में विरक्ति
आत्मा है परखती।
देह जल रहा विकारों से
मन जल रहा विचारों से।
अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये।
मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये।
तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ?
मन में फिर बैराग श्रेष्ठ।
मोह-माया का भीषण छल
भौतिकता का कोलाहल।
उन सब में इक आग है श्रेष्ठ
जलती चिता की राख है श्रेष्ठ।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White अपनी राहों के अकेले हफसफर हैं। यूँ ही नहीं हम सबसे बेखबर हैं। पैसे के बाजारों में,कौन पराया अपना कौन? लाशें भी यहाँ बिक जाएं,हो जाएं जब मुर्दे मौन। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#ऋतुराज_पपनै_क्षितिज #शायरी #bad_time  White  अपनी राहों के अकेले हफसफर हैं।
यूँ ही नहीं हम सबसे बेखबर हैं।
पैसे के बाजारों में,कौन पराया अपना कौन?
लाशें भी यहाँ बिक जाएं,हो जाएं जब मुर्दे मौन।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का आकांक्षाओं और आशाओं का। भावनाओं में विरक्ति आत्मा है परखती। देह जल रहा विकारों से मन जल रहा विचारों से। अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये। मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये। तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ? मन में फिर बैराग श्रेष्ठ। मोह-माया का भीषण छल भौतिकता का कोलाहल। उन सब में इक आग है श्रेष्ठ जलती चिता की राग श्रेष्ठ। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#सूर्यास्त #ऋतुराज #कविता  White सूर्यास्त हुआ इच्छाओं का
आकांक्षाओं और आशाओं का।
भावनाओं में विरक्ति
आत्मा है परखती।
देह जल रहा विकारों से
मन जल रहा विचारों से।
अन्तर्मन में द्वंद्व संजोये।
मेघ क्षीर के अश्रु पिरोये।
तन में क्यों अनुराग ज्येष्ठ?
मन में फिर बैराग श्रेष्ठ।
मोह-माया का भीषण छल
भौतिकता का कोलाहल।
उन सब में इक आग है श्रेष्ठ
जलती चिता की राग श्रेष्ठ।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है। हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#धोखेबाज_दोस्त #दिसम्बर #शायरी  White  थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है।
हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है। हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#धोखेबाज_दोस्त #धोखेबाज_साल #शायरी  थोड़ा सा ही बचा है,फिर भी सता रहा है।
हाथ में थामे खंजर,वो दिसम्बर जा रहा है।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"
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