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धरती का धैर्य किसान का तप और वृक्षों का संपूर्ण जीवन माँ का प्यार पिता का त्याग  तब जाकर सजा थाली में भोजन  चाव,आदर व संतुष्टी से ग्रहण करो  व्यर्थ न करो इसका एक भी कण ©Parul Sharma

#भोजन  धरती का धैर्य किसान का तप
और वृक्षों का संपूर्ण जीवन
माँ का प्यार पिता का त्याग 
तब जाकर सजा थाली में भोजन 
चाव,आदर व संतुष्टी से ग्रहण करो 
व्यर्थ न करो इसका एक भी कण

©Parul Sharma

#भोजन

17 Love

हृदय हर प्राणी को प्यारा है यह पशु पक्षी इंसान ज्ञानी पुरुष इसे कहतें हैं ईश्वर का वरदान जब तक काम करे यह सबकी चलती रहती सांसें इसपर यदि ख़तरा मंडराए संकट में हैं प्रान रहता सदा समेटे अंदर खट्टी मीठी यादें इसको घायल कर देतें हैं कटु बचनों के बान प्रेम से खुश होता है बेखुद नफ़रत से दुःख पाता जीवन का आधार धरा पर हृदय है इसका नाम ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #हृदय  हृदय
हर प्राणी को प्यारा है यह
पशु पक्षी इंसान
ज्ञानी पुरुष इसे कहतें हैं
ईश्वर का वरदान

जब तक काम करे यह सबकी
चलती रहती सांसें
इसपर यदि ख़तरा मंडराए
संकट में हैं प्रान

रहता सदा समेटे अंदर
खट्टी मीठी यादें
इसको घायल कर देतें हैं
कटु बचनों के बान

प्रेम से खुश होता है बेखुद
नफ़रत से दुःख पाता
जीवन का आधार धरा पर
हृदय है इसका नाम

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#हृदय

17 Love

White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ और मेरे कविता के बहते नासूर से फिर एक जिस्म तैयार होता है हर बार हृदय काग़ज के आर पार बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म की तूरपाई मे कागज के सिलवटों को नोच देता है दर्द नासूर का नही, जिस्म का नही काग़ज का होता मौत तीनों को कैद करता है रूह अकेला चित्कारता है कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है ©चाँदनी

#रोग  White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है
शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही
कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है

मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ
और मेरे कविता के बहते नासूर से 
फिर एक जिस्म तैयार होता है 

हर बार हृदय काग़ज के आर पार
बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म
की तूरपाई मे कागज के सिलवटों
को नोच देता है

दर्द नासूर का नही, जिस्म का
 नही काग़ज का होता

मौत तीनों को कैद करता है
रूह अकेला चित्कारता है

कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती
बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार
जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है

©चाँदनी

#रोग

16 Love

धरती का धैर्य किसान का तप और वृक्षों का संपूर्ण जीवन माँ का प्यार पिता का त्याग  तब जाकर सजा थाली में भोजन  चाव,आदर व संतुष्टी से ग्रहण करो  व्यर्थ न करो इसका एक भी कण ©Parul Sharma

#भोजन  धरती का धैर्य किसान का तप
और वृक्षों का संपूर्ण जीवन
माँ का प्यार पिता का त्याग 
तब जाकर सजा थाली में भोजन 
चाव,आदर व संतुष्टी से ग्रहण करो 
व्यर्थ न करो इसका एक भी कण

©Parul Sharma

#भोजन

17 Love

हृदय हर प्राणी को प्यारा है यह पशु पक्षी इंसान ज्ञानी पुरुष इसे कहतें हैं ईश्वर का वरदान जब तक काम करे यह सबकी चलती रहती सांसें इसपर यदि ख़तरा मंडराए संकट में हैं प्रान रहता सदा समेटे अंदर खट्टी मीठी यादें इसको घायल कर देतें हैं कटु बचनों के बान प्रेम से खुश होता है बेखुद नफ़रत से दुःख पाता जीवन का आधार धरा पर हृदय है इसका नाम ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #हृदय  हृदय
हर प्राणी को प्यारा है यह
पशु पक्षी इंसान
ज्ञानी पुरुष इसे कहतें हैं
ईश्वर का वरदान

जब तक काम करे यह सबकी
चलती रहती सांसें
इसपर यदि ख़तरा मंडराए
संकट में हैं प्रान

रहता सदा समेटे अंदर
खट्टी मीठी यादें
इसको घायल कर देतें हैं
कटु बचनों के बान

प्रेम से खुश होता है बेखुद
नफ़रत से दुःख पाता
जीवन का आधार धरा पर
हृदय है इसका नाम

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#हृदय

17 Love

White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ और मेरे कविता के बहते नासूर से फिर एक जिस्म तैयार होता है हर बार हृदय काग़ज के आर पार बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म की तूरपाई मे कागज के सिलवटों को नोच देता है दर्द नासूर का नही, जिस्म का नही काग़ज का होता मौत तीनों को कैद करता है रूह अकेला चित्कारता है कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है ©चाँदनी

#रोग  White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है
शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही
कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है

मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ
और मेरे कविता के बहते नासूर से 
फिर एक जिस्म तैयार होता है 

हर बार हृदय काग़ज के आर पार
बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म
की तूरपाई मे कागज के सिलवटों
को नोच देता है

दर्द नासूर का नही, जिस्म का
 नही काग़ज का होता

मौत तीनों को कैद करता है
रूह अकेला चित्कारता है

कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती
बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार
जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है

©चाँदनी

#रोग

16 Love

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