Sunil Kumar Maurya Bekhud

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उल्लू उल्लू बैठा हरी डाल पर देख रहा चहुँओर शांत शांत सा है वो लेकिन पक्षी मचाते शोर सोच रहा क्या मेरे अंदर नहीं है कोई खूबी या अवगुण के ही तलाश में सारी दुनिया डूबी मूर्खों की मुझसे तुलना कर लोग बहुत इतराते बात बात पर देते ताने मेरी हँसी उड़ाते कोई देख न सकता मुझ सा अंधेरी रातों में झूठ बोल मैं नहीं फँसाता लोगों को बातों में बेखुद सोच रहा लोगोँ की कब बदलेगी सोच ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #उल्लू  उल्लू
उल्लू बैठा हरी डाल पर
देख रहा चहुँओर
शांत शांत सा है वो लेकिन
पक्षी मचाते शोर

सोच रहा क्या मेरे अंदर
नहीं है कोई खूबी
या अवगुण के ही तलाश में
सारी दुनिया डूबी

मूर्खों की मुझसे तुलना कर
लोग बहुत इतराते
बात बात पर देते ताने
मेरी हँसी उड़ाते

कोई देख न सकता मुझ सा
अंधेरी रातों में
झूठ बोल मैं नहीं फँसाता
लोगों को बातों में

बेखुद सोच रहा लोगोँ की
कब बदलेगी सोच

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

कविता तुम आयी मेरे जीवन में अगडित भावों को लेकर उर का मंथन किया उदाधि सा कर में लेखनी देकर कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो कभी वेदना मन की कोरे कागज पर लिखवाए व्यथा मेरे जीवन की देश काल की घटनाओं से द्रवित हुआ जब भी मन चली लेखनी सरपट लिखने तोड़ के सारे बंधन कभी प्रकृति का रूप निहारा सुंदरता में खोए उसकी छटा देखकर मन में सपने कई संजोए बेखुद साथ तुम्हारा मेरा दिन हो या हो सविता नहीं रुकेगी मेरी लेखनी तुम हो मेरी कविता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

 कविता
तुम आयी मेरे जीवन में
अगडित भावों को लेकर
उर का मंथन किया उदाधि सा
कर में लेखनी देकर

कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो
कभी वेदना मन की
कोरे कागज पर लिखवाए
व्यथा मेरे जीवन की

देश काल की घटनाओं से
द्रवित हुआ जब भी मन
चली लेखनी सरपट लिखने
तोड़ के सारे बंधन

कभी प्रकृति का रूप निहारा
सुंदरता में खोए
उसकी छटा देखकर मन में
सपने कई संजोए

बेखुद  साथ तुम्हारा मेरा
दिन हो या हो सविता
नहीं रुकेगी मेरी लेखनी
तुम हो मेरी कविता

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता

16 Love

अग्नि जलती हुई अग्नि कहती है मेरे भीतर ताप पास बुलाती यदि हो कोई रहा ठंड से कांप मुझे देख भयभीत है कोई किसी को मुझसे प्रीत मेरे ऊपर लिखे गए हैं अगणित सुंदर गीत धधक रही हूँ किसी हृदय में बन नफरत या प्रेम या फिर मैं प्रतिशोध रूप में ज्वाला मेरी देन चूल्हे में जाकर मैं प्रतिदिन सबकी भूख मिटाती मुझसे अहित न होने पाए दुनिया को समझाती बेखुद ईश्वर से विनती है हाथ जोड़कर मेरी परहित में न होने पाए कभी भी मुझसे देरी ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #अग्नि  अग्नि
जलती हुई अग्नि कहती है
मेरे भीतर ताप
पास बुलाती  यदि हो कोई
रहा ठंड से कांप

मुझे देख भयभीत है कोई
किसी को मुझसे प्रीत
मेरे ऊपर लिखे गए हैं
अगणित सुंदर गीत

धधक रही हूँ किसी हृदय में
बन नफरत या प्रेम
या फिर मैं प्रतिशोध रूप में
ज्वाला मेरी देन

चूल्हे में जाकर मैं प्रतिदिन
सबकी भूख मिटाती
मुझसे अहित न होने पाए
दुनिया को समझाती

बेखुद ईश्वर से विनती है
हाथ जोड़कर मेरी
परहित में न होने पाए
कभी भी मुझसे देरी

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

Unsplash कोयल अपनी मीठी बोली से करती सबको मोहित सबका मन हो जाता है मुझे देख कर हर्षित काली हूँ कौए जैसा रँग रूप है मेरा सभी चाहते आंगन में डालूँ उनके डेरा मेरे गीतों को सुनकर मंत्रमुग्ध सब होते बड़े चाव से सुनते हैं अपनी सुधि बुधि खोते बेखुद अपना लक्ष्य है सबको खुशी लुटाऊँ मधुसूदन दौड़ा आए जिस बगिया में जाऊँ ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #कोयल  Unsplash         कोयल
अपनी मीठी बोली से
करती सबको मोहित
सबका मन हो जाता है
मुझे देख कर हर्षित

काली हूँ कौए जैसा
रँग रूप है मेरा
सभी चाहते आंगन में
डालूँ उनके डेरा

मेरे गीतों को सुनकर
मंत्रमुग्ध सब होते
बड़े चाव से सुनते हैं
अपनी सुधि बुधि खोते

बेखुद अपना लक्ष्य है
सबको खुशी लुटाऊँ
मधुसूदन दौड़ा आए
जिस बगिया में जाऊँ

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कोयल

12 Love

बाजार कोई कमाता है धन आकर कोई यहाँ गंवाता नहीं जेब में फूटी कौड़ी तो आकर ललचाता मोल भाव है आम यहाँ पर हैं क्रेता विक्रेता घर जाता है लुटकर कोई बनकर कोई विजेता यही पेट भरता है सबका सुख सुविधा है देता गुणवत्ता जैसी होती है वैसी कीमत लेता बेखुद क्रय विक्रय का नाता आपस में है गहरा ठग लेती बाजार प्यार से कोई अनाड़ी ठहरा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #बाजार  बाजार
कोई कमाता है धन आकर
कोई यहाँ गंवाता
नहीं जेब में फूटी कौड़ी
तो आकर ललचाता

मोल भाव है आम यहाँ पर
हैं क्रेता विक्रेता
घर जाता है लुटकर कोई
बनकर कोई विजेता

यही पेट भरता है सबका
सुख सुविधा है देता
गुणवत्ता जैसी होती है
वैसी कीमत लेता

बेखुद क्रय विक्रय का नाता
आपस में है गहरा
ठग लेती बाजार प्यार से
कोई अनाड़ी ठहरा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

Unsplash फल फल की चिंता क्यो करें फल तो आएगा ही जो श्रम किया है अथक वह फल पाएगा ही अगर सींचा है तरु को खाद डाला है जड़ों में खिलेंगे सुंदर पुष्प जब मन हर्षाएगा ही सजग रहना होगा ही शत्रुओं से हरदम जो सो जाएगा बेसुध वो पछताएगा ही कर्म का तोड़ न कोई कर्म बेजोड़ है बेखुद फल तो पारितोषिक है वो मिल जाएगा ही ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#कविता #फल  Unsplash फल
फल की चिंता क्यो करें
फल तो आएगा ही 
जो श्रम किया है अथक
वह फल पाएगा ही

अगर सींचा है तरु को
खाद डाला है जड़ों में
खिलेंगे सुंदर पुष्प जब
मन हर्षाएगा ही

सजग रहना होगा ही
शत्रुओं से हरदम
जो सो जाएगा बेसुध
वो पछताएगा ही

कर्म का तोड़ न कोई
कर्म बेजोड़ है बेखुद
फल तो पारितोषिक है
वो मिल जाएगा ही

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

#फल

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