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उल्लू उल्लू बैठा हरी डाल पर देख रहा चहुँओर शांत शांत सा है वो लेकिन पक्षी मचाते शोर सोच रहा क्या मेरे अंदर नहीं है कोई खूबी या अवगुण के ही तलाश में सारी दुनिया डूबी मूर्खों की मुझसे तुलना कर लोग बहुत इतराते बात बात पर देते ताने मेरी हँसी उड़ाते कोई देख न सकता मुझ सा अंधेरी रातों में झूठ बोल मैं नहीं फँसाता लोगों को बातों में बेखुद सोच रहा लोगोँ की कब बदलेगी सोच ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
Sunil Kumar Maurya Bekhud
12 Love
कविता तुम आयी मेरे जीवन में अगडित भावों को लेकर उर का मंथन किया उदाधि सा कर में लेखनी देकर कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो कभी वेदना मन की कोरे कागज पर लिखवाए व्यथा मेरे जीवन की देश काल की घटनाओं से द्रवित हुआ जब भी मन चली लेखनी सरपट लिखने तोड़ के सारे बंधन कभी प्रकृति का रूप निहारा सुंदरता में खोए उसकी छटा देखकर मन में सपने कई संजोए बेखुद साथ तुम्हारा मेरा दिन हो या हो सविता नहीं रुकेगी मेरी लेखनी तुम हो मेरी कविता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
16 Love
अग्नि जलती हुई अग्नि कहती है मेरे भीतर ताप पास बुलाती यदि हो कोई रहा ठंड से कांप मुझे देख भयभीत है कोई किसी को मुझसे प्रीत मेरे ऊपर लिखे गए हैं अगणित सुंदर गीत धधक रही हूँ किसी हृदय में बन नफरत या प्रेम या फिर मैं प्रतिशोध रूप में ज्वाला मेरी देन चूल्हे में जाकर मैं प्रतिदिन सबकी भूख मिटाती मुझसे अहित न होने पाए दुनिया को समझाती बेखुद ईश्वर से विनती है हाथ जोड़कर मेरी परहित में न होने पाए कभी भी मुझसे देरी ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
11 Love
Unsplash कोयल अपनी मीठी बोली से करती सबको मोहित सबका मन हो जाता है मुझे देख कर हर्षित काली हूँ कौए जैसा रँग रूप है मेरा सभी चाहते आंगन में डालूँ उनके डेरा मेरे गीतों को सुनकर मंत्रमुग्ध सब होते बड़े चाव से सुनते हैं अपनी सुधि बुधि खोते बेखुद अपना लक्ष्य है सबको खुशी लुटाऊँ मधुसूदन दौड़ा आए जिस बगिया में जाऊँ ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
बाजार कोई कमाता है धन आकर कोई यहाँ गंवाता नहीं जेब में फूटी कौड़ी तो आकर ललचाता मोल भाव है आम यहाँ पर हैं क्रेता विक्रेता घर जाता है लुटकर कोई बनकर कोई विजेता यही पेट भरता है सबका सुख सुविधा है देता गुणवत्ता जैसी होती है वैसी कीमत लेता बेखुद क्रय विक्रय का नाता आपस में है गहरा ठग लेती बाजार प्यार से कोई अनाड़ी ठहरा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
17 Love
Unsplash फल फल की चिंता क्यो करें फल तो आएगा ही जो श्रम किया है अथक वह फल पाएगा ही अगर सींचा है तरु को खाद डाला है जड़ों में खिलेंगे सुंदर पुष्प जब मन हर्षाएगा ही सजग रहना होगा ही शत्रुओं से हरदम जो सो जाएगा बेसुध वो पछताएगा ही कर्म का तोड़ न कोई कर्म बेजोड़ है बेखुद फल तो पारितोषिक है वो मिल जाएगा ही ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
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