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बँटवारा जब संग रहकर रिश्तों की थक जाती है धारा कोई नहीं बचता है चारा तब होता बँटवारा धारा बँटकर कई दिशाओं में जाकर खुश होती लेकिन रिश्तें याद आयें जब छुप छुप कर है रोती उन्हें एक रहने में लगता है खुद का नुकसान चूल्हे जलते कई तो बँटकर होता दुःखी मकान जान रहे बँटवारे से कम होगी अपनी ताकत फिर भी खुशी खुशी देते हैं बँटवारे को दावत बँटवारा ना जाने कितने खड़ी करे दीवारें इक माता के दो पुत्रों में खिंच जाती तलवारें बेखुद वतन बँटा दे गया सबको गहरे घाव उसके काँटे चुभते रहते ज़ख़्मी होते पाँव स्वरचित सुनील कुमार मौर्य बेखुद गोरखपुर उत्तर प्रदेश २४/०१/२०२५ ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
Sunil Kumar Maurya Bekhud
10 Love
White समंदर में नाव चल रही झूमते समंदर में नाव बैठा जो उसमें हिल रहे पाँव असमान साफ है पवन है शांत ऐसा बने रहना आवश्यक नितांत वरना है मंजिल अभी बहुत दूर कहीँ हो न जाएं स्वप्न चूर चूर काश आज मौसम करवट न बदले आये न तूफ़ाँ मंजिल से पहले तेज तेज चप्पू है माँझी चलाता बेखुद खुशी खुशी बढ़ता ही जाता ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
11 Love
White सर्दी देख धारा पर आई सर्दी बदल गई है सबकी वर्दी हाथों में कुदरत की सत्ता चला रही अपनी मनमर्जी भूले खाना बर्फ के गोले डरें देख कर शीत व ओले लस्सी दही को अब ना छूना अपने बच्चों से माँ बोले लाद रहे सब तन पर कपड़े दुबले भी लगते हैं तगड़े चिंतित ठिठुर रही गौ माता काँप रहें हैं उनके बछड़े कहते कंबल और रजाई मेरे अंदर छुप जा भाई नहीं तो लग जाएगी सर्दी भुलोगे फिर गुंडा गर्दी टोपी स्वेटर उनी चादर संदूकों से निकले बाहर कहें ठंड से हमको लड़ना खोज रहे थे कब से अवशर फिर भी ठंढ अकड़ से कहती जो पंगा ले नाक है बहती सिर्फ आग से ही मै डरती उससे दुर सदा ही रहती बेखुद पशु पक्षी है कहते हम मजबूर खुले में रहते कौन हमारा करे सुरक्षा जब तक सर्दी है दुःख सहते ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
लालटेन कभी उजाला मैं करता था आज पड़ा बेकार हूँ ठुकराया मानव ने मुझको चिड़ियों का घर द्वार हूँ मानव की यह प्रकृति है जब वह नये दौर में जाता है तब अतीत से रिश्ते नाते निष्ठुर बन ठुकराता है विद्युत ऊर्जा से आलोकित अब उसका संसार हुआ लालटेन कहता कबाड़ मैं बनकरके लाचार हुआ अब चिड़ियों ने अपना कर अपना संसार बसाया है मेरा वजूद अब भी बाकी मुझको अहसास कराया है बेखुद मैं बूढ़ा हूँ बेशक अरमान अभी भी जिंदा है उसको न कभी मरने दूँगा जब तक मेरे संग परिंदा है ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
15 Love
दीपक कहता है दीपक हम सबसे तुम मेरे मन की व्यथा सुनो मेरी भी एक कहानी है दुःख भरी मेरी है कथा सुनो पहले जमीन का हिस्सा था जीवन देता था औरों को खिलते थे फूल बुलाते थे मकरंद के प्यासे भौंरों को मुझे पर कुम्हार का दिल आया ले गया उठा कर अपने घर उसने यह रूप दिया मुझको कोई भी देख कहे सुंदर निकली है आह मेरी उसने तपती भट्ठी में तपा दिया डाला है बाती तेल मुझे ले गया मुझे जो जला दिया रहता हूँ स्वयं अंधेरे में पर उसे उजाला देता हूँ इसके बदले में मैं कुछ भी उससे कुछ भी ना लेता हूँ कहता हूँ मेरी बात सुनो बेखुद मेरा यह किस्सा है जलना बुझना ही प्रतिदिन अब मेरे जीवन का हिस्सा है ©Sunil Kumar Maurya Bekhud
14 Love
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