White क्या मैं हूं कहीं,
या मैं हूं ही नहीं
तुम्हारी हर खुशियों के शोर शराबे में, किसी कोने कचोने में चीखें मेरी दबी पड़ी
तुम्हारे उत्सव और त्योहारों में, घर में कभी ना मुझको मिली मौजूदगी,,,
क्या मैं हूं कहीं
या मैं हूं ही नहीं
दिन भर के थके बदन के चूर चूर हालातों में,
शामों के कामों व रात भर के
दिल,मन,जज्बातों के मरे
खून से चकनाचूर हुए बिखरे जर्जर शरीर की ,
तुम्हारे अरामो, विश्रामों या खिलखिलाकर बतियाती बातों से परे
टूटे फूटे बदन की मेरी, नंगे पांव गुजरी जलती हर दोपहरी
क्या मैं हूं कहीं,,
या मैं हूं ही नहीं,,,,
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©Rakesh frnds4ever
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