चलो अच्छा है कोई रोकने वाला नहीं है,
सफ़र तन्हा है कोई टोकने वाला नहीं है,
जुवाँ खामोश भी रखूँ तो कागज़ बोलता है,
डरें क्यों अब यहाँ कोई भौंकने वाला नहीं है,
उन्हें गुमान उनकी हर रज़ा मक़बूल होगी,
फ़लक पर कोई कीचड़ फेंकने वाला नहीं है,
मैं तन्हा हूँ मुकम्मल साथ मेरी शायरी है,
बुझा चूल्हा है रोटी सेंकने वाला नहीं है,
वो बन ठनकर निकलते हैं बड़ी मसरूफियत से,
है दर्द-ए-दिल बहुत कोई देखने वाला नहीं है,
जो मन में आता है बेखौफ़ बोलता हूँ अब,
शुक्र है अब मेरे मुँह पर कोई ताला नहीं है,
वही लिखता हूँ जो महसूस मैं करता हूँ 'गुंजन',
हमारे दिल में नफ़रत का कोई जाला नहीं है,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
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