वक्त की आगोश में खोए लम्हों की सदा
दिन का उजाला काली रात में जब घुल सा जाता है,
काले बालों पर सफेदी का रंग यूं धीरे-धीरे छाता है।
दरख़्तों को देखता हूँ, जो कभी थे हरियाली की मिसाल,
अब बिन पत्तों के खड़े हैं, वक्त का ये भी एक हाल।
ग्रीष्म में जो राहगीरों को ठंडक पहुंचाते थे हर बार,
आज वो सूखे ढेरों में बदल गए, जैसे वक्त ने की है मार।
तब सोचता हूँ, तेरी खूबसूरती का क्या होगा अंजाम,
इस वक्त के साये में, रहेगा क्या तेरा कोई नाम? वक्त की धार हर हुस्न को मिटा के जाती है,
नई खुशबू के संग पुरानी यादों को दबा जाती है।
वक्त की दराँती से कौन बच सका है यहाँ,
किसे है खबर इस सफर की आखिरी मंजिल है कहां?
पर एक उम्मीद है, जो तेरी बनाए रखेगी पहचान,
जो तेरा नाम यूं ही रोशन करेगी, वो है तेरी संतान।
©नवनीत ठाकुर
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