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New sad love poetry in urdu two lines Status, Photo, Video

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##SadStorytelling sad urdu poetry deep poetry in urdu sad poetry urdu poetry

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urdu poetry sad poetry in english metaphysical poetry urdu poetry love poetry in hindi

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हमने भी देखें हैं बहारों के दिन हम पर भी था जवानी का खुमार हमारा भी धड़का था जोर से दिल हमने भी किया था इश्क- इजहार भली सी एक सांवली सी सूरत से हमें भी था कभी बे -इंतहा प्यार हम भी खुली आंख खाब देखते थे हमें भी होता था मोहब्बत पे एतबार किसी की एक नज़र पाने को हमारा दिल भी होता था बे-करार किसी को अपनी बाहों में भर कर हमें भी मिलता था सुकूं-ओ-करार हमने भी खायी थी वफा की कसमें हमें भी था अपने वादों से सरोकार फिर कुछ दरारें पड़ी दिलों में'बेखबर' ढ़ह गया मेरी मोहब्बत का घर-बार ©_बेखबर

 हमने  भी   देखें    हैं बहारों के  दिन
हम पर भी  था  जवानी   का खुमार 

हमारा  भी धड़का  था जोर से  दिल 
हमने भी  किया  था  इश्क- इजहार

भली सी  एक  सांवली सी  सूरत  से 
हमें  भी  था  कभी  बे -इंतहा  प्यार 

हम  भी खुली  आंख खाब देखते थे
हमें भी होता था मोहब्बत पे एतबार 

किसी  की   एक   नज़र   पाने   को
हमारा  दिल  भी  होता  था बे-करार 

किसी को  अपनी  बाहों में  भर कर
हमें भी  मिलता था  सुकूं-ओ-करार

हमने भी  खायी थी वफा की कसमें 
हमें भी  था अपने  वादों से सरोकार

फिर कुछ दरारें पड़ी दिलों में'बेखबर'
ढ़ह गया मेरी  मोहब्बत का  घर-बार

©_बेखबर

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14 Love

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हमने भी देखें हैं बहारों के दिन हम पर भी था जवानी का खुमार हमारा भी धड़का था जोर से दिल हमने भी किया था इश्क- इजहार भली सी एक सांवली सी सूरत से हमें भी था कभी बे -इंतहा प्यार हम भी खुली आंख खाब देखते थे हमें भी होता था मोहब्बत पे एतबार किसी की एक नज़र पाने को हमारा दिल भी होता था बे-करार किसी को अपनी बाहों में भर कर हमें भी मिलता था सुकूं-ओ-करार हमने भी खायी थी वफा की कसमें हमें भी था अपने वादों से सरोकार फिर कुछ दरारें पड़ी दिलों में'बेखबर' ढ़ह गया मेरी मोहब्बत का घर-बार ©_बेखबर

 हमने  भी   देखें    हैं बहारों के  दिन
हम पर भी  था  जवानी   का खुमार 

हमारा  भी धड़का  था जोर से  दिल 
हमने भी  किया  था  इश्क- इजहार

भली सी  एक  सांवली सी  सूरत  से 
हमें  भी  था  कभी  बे -इंतहा  प्यार 

हम  भी खुली  आंख खाब देखते थे
हमें भी होता था मोहब्बत पे एतबार 

किसी  की   एक   नज़र   पाने   को
हमारा  दिल  भी  होता  था बे-करार 

किसी को  अपनी  बाहों में  भर कर
हमें भी  मिलता था  सुकूं-ओ-करार

हमने भी  खायी थी वफा की कसमें 
हमें भी  था अपने  वादों से सरोकार

फिर कुछ दरारें पड़ी दिलों में'बेखबर'
ढ़ह गया मेरी  मोहब्बत का  घर-बार

©_बेखबर

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