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green-leaves पल्लव की डायरी खता कोई करे खतो को आजमाने की सेटेलाइट से भाव कम हो गये है एप के नक्शे कदम पर चलती दुनिया सोच निर्भर सेल फोन पर हो गयी है आधिनिकता रीत रिवाज परम्परा सब खा रही है निशब्द होकर मन मस्तिष्क मानव का पुतलो की शक्ल लेती जा रही है दूर है सुख दुख में संग साथी खुशियाँ और संवेदनाये सोशल मीडिया से निभायी जा रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #GreenLeaves  green-leaves पल्लव की डायरी
खता कोई करे
खतो को आजमाने की
सेटेलाइट से भाव कम हो गये है
एप के नक्शे कदम पर चलती दुनिया
सोच निर्भर सेल फोन पर हो गयी है
आधिनिकता रीत रिवाज परम्परा सब खा रही है
निशब्द होकर मन मस्तिष्क मानव का
पुतलो की शक्ल लेती जा रही है
दूर है सुख दुख में संग साथी
खुशियाँ और संवेदनाये 
सोशल मीडिया से निभायी जा रही है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#GreenLeaves खता कोई करे,खतो को आजमाने की

23 Love

क्या कहूं तुमसे बड़ी खता हुई दर्द दिल को लगी, तेरी लबों की सुर्ख गुलाब सी मोहब्बत की अदा हुई कुछ कह न सके ओ लब लब से मिले दिलों के दो फूल खिले ©Champak

#शायरी #खता #लब #dhoop  क्या कहूं तुमसे बड़ी खता हुई 
दर्द दिल को लगी,
 तेरी लबों की सुर्ख गुलाब सी  मोहब्बत की अदा हुई
कुछ कह न सके ओ लब 
लब से मिले दिलों के दो फूल खिले

©Champak
#YadaYadaHiDharmasya #danceperformance #sunitapathania #synchronise #Mahabharat
#krishna_flute #Mahabharat

White Yesterday I saw a few episodes of the Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God... ©neelu

#Mahabharat #sad_quotes #yesterday #Bhakti #Saw  White Yesterday I saw a few episodes 
of the Mahabharat series 
and today all I can say is
विजय भव .....कल्याण हो..
Thank God...

©neelu

#sad_quotes #yesterday I #Saw a few episodes of the #Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God...

16 Love

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha

green-leaves पल्लव की डायरी खता कोई करे खतो को आजमाने की सेटेलाइट से भाव कम हो गये है एप के नक्शे कदम पर चलती दुनिया सोच निर्भर सेल फोन पर हो गयी है आधिनिकता रीत रिवाज परम्परा सब खा रही है निशब्द होकर मन मस्तिष्क मानव का पुतलो की शक्ल लेती जा रही है दूर है सुख दुख में संग साथी खुशियाँ और संवेदनाये सोशल मीडिया से निभायी जा रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#कविता #GreenLeaves  green-leaves पल्लव की डायरी
खता कोई करे
खतो को आजमाने की
सेटेलाइट से भाव कम हो गये है
एप के नक्शे कदम पर चलती दुनिया
सोच निर्भर सेल फोन पर हो गयी है
आधिनिकता रीत रिवाज परम्परा सब खा रही है
निशब्द होकर मन मस्तिष्क मानव का
पुतलो की शक्ल लेती जा रही है
दूर है सुख दुख में संग साथी
खुशियाँ और संवेदनाये 
सोशल मीडिया से निभायी जा रही है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

#GreenLeaves खता कोई करे,खतो को आजमाने की

23 Love

क्या कहूं तुमसे बड़ी खता हुई दर्द दिल को लगी, तेरी लबों की सुर्ख गुलाब सी मोहब्बत की अदा हुई कुछ कह न सके ओ लब लब से मिले दिलों के दो फूल खिले ©Champak

#शायरी #खता #लब #dhoop  क्या कहूं तुमसे बड़ी खता हुई 
दर्द दिल को लगी,
 तेरी लबों की सुर्ख गुलाब सी  मोहब्बत की अदा हुई
कुछ कह न सके ओ लब 
लब से मिले दिलों के दो फूल खिले

©Champak
#YadaYadaHiDharmasya #danceperformance #sunitapathania #synchronise #Mahabharat
#krishna_flute #Mahabharat

White Yesterday I saw a few episodes of the Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God... ©neelu

#Mahabharat #sad_quotes #yesterday #Bhakti #Saw  White Yesterday I saw a few episodes 
of the Mahabharat series 
and today all I can say is
विजय भव .....कल्याण हो..
Thank God...

©neelu

#sad_quotes #yesterday I #Saw a few episodes of the #Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God...

16 Love

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha
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