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Unsplash "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया, ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।" "वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ, वक़्त आया तो वही दोस्त कई बार गिरे।" "इश्क़ की राहों में सिखलाए न हमको सब्र, जब संभलना था हमें, टूट के अशआर गिरे।" "ख़ुद को देखा तो समझ आया हमें ये 'नवनीत', पत्थरों से जो बचा था, वो मेरे यार गिरे।" ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर #शायरी  Unsplash "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया,
ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।"

"वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ,
वक़्त आया तो वही दोस्त कई बार गिरे।"

"इश्क़ की राहों में सिखलाए न हमको सब्र,
जब संभलना था हमें, टूट के अशआर गिरे।"

"ख़ुद को देखा तो समझ आया हमें ये 'नवनीत',
पत्थरों से जो बचा था, वो मेरे यार गिरे।"

©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया, ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।" "वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ, वक़्त आया त

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काम करते हुए

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चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी से भरे हुए#

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Unsplash "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया, ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।" "वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ, वक़्त आया तो वही दोस्त कई बार गिरे।" "इश्क़ की राहों में सिखलाए न हमको सब्र, जब संभलना था हमें, टूट के अशआर गिरे।" "ख़ुद को देखा तो समझ आया हमें ये 'नवनीत', पत्थरों से जो बचा था, वो मेरे यार गिरे।" ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर #शायरी  Unsplash "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया,
ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।"

"वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ,
वक़्त आया तो वही दोस्त कई बार गिरे।"

"इश्क़ की राहों में सिखलाए न हमको सब्र,
जब संभलना था हमें, टूट के अशआर गिरे।"

"ख़ुद को देखा तो समझ आया हमें ये 'नवनीत',
पत्थरों से जो बचा था, वो मेरे यार गिरे।"

©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर "अबके मौसम ने फिर उम्मीद से धोखा दिया, ख़्वाब टूटे तो कई शाख से बीमार गिरे।" "वो जो साए थे कभी छाँव की मानिंद यहाँ, वक़्त आया त

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चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

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