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White // अंधविश्वास के खिलाफ // अंधकार में रहते हो तुम अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए तुम्हारे मन में डर है अज्ञानता का तुम्हारे दिमाग में शंका का साया है क्यों मानते हो झूठे करिश्मे क्यों मानते हो अंधविश्वास के नुस्खे तुम्हारी बुद्धि को जागृत करो तुम्हारे मन को निर्मल करो विज्ञान की रोशनी में चलो तर्क की राह में चलो अंधविश्वास के खिलाफ बोलो सत्य की राह में चलो निर्भीकता से जीवन जियो स्वतंत्रता से सोचो अंधविश्वास के जाल से मुक्ति पाओ ज्ञान की रोशनी में जियो ©बेजुबान शायर shivkumar

#अंधविश्वास #अज्ञानता #मुक्ति #विचार #रोशनी #खिलाफ  White // अंधविश्वास के खिलाफ //

अंधकार में रहते हो तुम
अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए
तुम्हारे मन में डर है अज्ञानता का
तुम्हारे दिमाग में शंका का साया है

क्यों मानते हो झूठे करिश्मे
क्यों मानते हो अंधविश्वास के नुस्खे
तुम्हारी बुद्धि को जागृत करो
तुम्हारे मन को निर्मल करो

विज्ञान की रोशनी में चलो
तर्क की राह में चलो
अंधविश्वास के खिलाफ बोलो
सत्य की राह में चलो

निर्भीकता से जीवन जियो
स्वतंत्रता से सोचो
अंधविश्वास के जाल से मुक्ति पाओ
ज्ञान की रोशनी में जियो

©बेजुबान शायर shivkumar

@Sethi Ji @puja udeshi @poonam atrey @Kshitija @Bhanu Priya आज का विचार अनमोल विचार अनमोल विचार अच्छे विचारों नये अच्छे विचार // #अंधविश्

17 Love

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

©person

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

18 Love

White // अंधविश्वास के खिलाफ // अंधकार में रहते हो तुम अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए तुम्हारे मन में डर है अज्ञानता का तुम्हारे दिमाग में शंका का साया है क्यों मानते हो झूठे करिश्मे क्यों मानते हो अंधविश्वास के नुस्खे तुम्हारी बुद्धि को जागृत करो तुम्हारे मन को निर्मल करो विज्ञान की रोशनी में चलो तर्क की राह में चलो अंधविश्वास के खिलाफ बोलो सत्य की राह में चलो निर्भीकता से जीवन जियो स्वतंत्रता से सोचो अंधविश्वास के जाल से मुक्ति पाओ ज्ञान की रोशनी में जियो ©बेजुबान शायर shivkumar

#अंधविश्वास #अज्ञानता #मुक्ति #विचार #रोशनी #खिलाफ  White // अंधविश्वास के खिलाफ //

अंधकार में रहते हो तुम
अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए
तुम्हारे मन में डर है अज्ञानता का
तुम्हारे दिमाग में शंका का साया है

क्यों मानते हो झूठे करिश्मे
क्यों मानते हो अंधविश्वास के नुस्खे
तुम्हारी बुद्धि को जागृत करो
तुम्हारे मन को निर्मल करो

विज्ञान की रोशनी में चलो
तर्क की राह में चलो
अंधविश्वास के खिलाफ बोलो
सत्य की राह में चलो

निर्भीकता से जीवन जियो
स्वतंत्रता से सोचो
अंधविश्वास के जाल से मुक्ति पाओ
ज्ञान की रोशनी में जियो

©बेजुबान शायर shivkumar

@Sethi Ji @puja udeshi @poonam atrey @Kshitija @Bhanu Priya आज का विचार अनमोल विचार अनमोल विचार अच्छे विचारों नये अच्छे विचार // #अंधविश्

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गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

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