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#कोट्स

बचपन की यादें......

414 View

#कॉमेडी

हमारी बचपन में 🤣🤣

99 View

#लव

बचपन लव शायरियां

117 View

न समझदार हूं और न ही बनना चाहता हूं टेंशन से लबालब जिंदगी छोड़ ऐ मेरे मालिक में तो बचपन में ही जीना चाहता हूं। ©Monu Saini

 न समझदार हूं  और न ही बनना चाहता हूं 
टेंशन से लबालब जिंदगी छोड़ ऐ मेरे मालिक में तो बचपन में ही जीना चाहता हूं।

©Monu Saini

बचपन# समझदार

14 Love

White वो बचपन कितना अच्छा था प्यार हमारा सच्चा था धोखा दगाकुछ ना जाने क्यों कि तब में बच्चा था ©डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.)

#शायरी  White वो बचपन कितना अच्छा था 
प्यार हमारा सच्चा था 
धोखा दगाकुछ ना जाने 
क्यों कि तब में बच्चा था

©डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.)

wo बचपन

21 Love

बचपन की यादें किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,, वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन, बेवजह क्यूँ याद आ गए,,, वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,, ‌टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,, ‌माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,, ‌वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,, ‌वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,, ‌मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,, ‌अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं ‌ क्यों याद आ गए,,, ‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,, ‌सावन के झूलों में घण्टों लटकना,, ‌वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,, ‌फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे, ‌वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,, ‌था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम, ‌अब तो हर सांस पे लगता है राशन,, ‌चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,, ‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,, राकेश सोनगरा, सरदारशहर ©Rakesh Songara

#कोट्स #बचपन  बचपन की यादें  किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,
वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन,
बेवजह क्यूँ याद आ गए,,,
वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,,
‌टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,,
‌माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,,
‌वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,,
‌वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,,
‌मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,,
‌अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं
‌ क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,
‌सावन के झूलों में घण्टों लटकना,,
‌वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,,
‌फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे,
‌वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,,
‌था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम,
‌अब तो  हर सांस पे लगता है राशन,,
‌चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,,
             राकेश सोनगरा, सरदारशहर

©Rakesh Songara
#कोट्स

बचपन की यादें......

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#कॉमेडी

हमारी बचपन में 🤣🤣

99 View

#लव

बचपन लव शायरियां

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न समझदार हूं और न ही बनना चाहता हूं टेंशन से लबालब जिंदगी छोड़ ऐ मेरे मालिक में तो बचपन में ही जीना चाहता हूं। ©Monu Saini

 न समझदार हूं  और न ही बनना चाहता हूं 
टेंशन से लबालब जिंदगी छोड़ ऐ मेरे मालिक में तो बचपन में ही जीना चाहता हूं।

©Monu Saini

बचपन# समझदार

14 Love

White वो बचपन कितना अच्छा था प्यार हमारा सच्चा था धोखा दगाकुछ ना जाने क्यों कि तब में बच्चा था ©डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.)

#शायरी  White वो बचपन कितना अच्छा था 
प्यार हमारा सच्चा था 
धोखा दगाकुछ ना जाने 
क्यों कि तब में बच्चा था

©डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.)

wo बचपन

21 Love

बचपन की यादें किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,, वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन, बेवजह क्यूँ याद आ गए,,, वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,, ‌टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,, ‌माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,, ‌वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,, ‌वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,, ‌मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,, ‌अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं ‌ क्यों याद आ गए,,, ‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,, ‌सावन के झूलों में घण्टों लटकना,, ‌वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,, ‌फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे, ‌वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,, ‌था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम, ‌अब तो हर सांस पे लगता है राशन,, ‌चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,, ‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,, राकेश सोनगरा, सरदारशहर ©Rakesh Songara

#कोट्स #बचपन  बचपन की यादें  किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,
वो खेल-खिलौने कागज़ के,मिट्टी के बर्तन,
बेवजह क्यूँ याद आ गए,,,
वो बेपरवाह बदमाशियां,अठखेलियां, शरारतें सारी,,
‌टूटी फूटी,रंगबिरंगी चूड़ियां प्यारी,,
‌माटी के घरौंदे में घर-घर का खेला,,
‌वो तीज़ त्योहार, गणगौर का मैला,,,
‌वो कुल्फ़ी की चुस्कियों से जुबां की लाली,,
‌मदारी के डमरू पे बजती वो ताली,,
‌अनोखे वो दिन वो बातें पुरानी पता नहीं
‌ क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,
‌सावन के झूलों में घण्टों लटकना,,
‌वो बारिश की बूंदों में छम-छम रपटना,,,
‌फ़टे कपड़ों में भी खुशियां समेटे,
‌वो रेहड़ी से केलों के गुच्छे झपटना,,
‌था जिंदादिल अब से वो बचपन का मौसम,
‌अब तो  हर सांस पे लगता है राशन,,
‌चोट खाके भी हँसने के किस्से पता नही क्यों याद आ गए,,,
‌किस्से बीते बचपन के आज अर्से बाद पता नहीं क्यों याद आ गए,,,,,,,,,,,
             राकेश सोनगरा, सरदारशहर

©Rakesh Songara
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