Unsplash भीड़ में होकर, भीड़ में खो जाना।
या भीड़ में अपने जीवन की बागडोर को समर्पित कर।
अपनी जान जोखिम में डाल देना।
यह कैसी समझदारी है, यह कैसी शिक्षा है।
जिसे समझने के बाद भी, अभी तक समझ में आई नहीं।
मानते हैं बात आस्था की है, बात ईश्वर की प्राप्ति की है, बात धर्म की है।
क्या इस तरीके से ही, आस्था बढ़ेगी।
क्या इस मार्ग से होकर ही, ईश्वर मिलेंगे।
क्या इसी पथ से होकर ही, धर्म का नाम ऊंचा होगा। वह पवित्रता हमारे भीतर है, वह धर्म हमारे भीतर है। वह ईश्वर हमारे भीतर है, वह मोक्ष हमारे भीतर है। फिर भीड़ में प्राणों की दांव पेंच खेल कर,
हम क्या हासिल कर लेते हैं?
©Rohan Roy
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