जब मौजूद थे इक-दूसरे के लिए तब इक-दूसरे की क़द्र की नहीं हमनें
तो अब इक-दूसरे से दूरियों का मलाल भला किस हक़ से करते हैं हम??
जब ख़ुद ही बंद किए थे दरवाज़े और रास्ते-इक दूसरे के लिए,
तो अब इक-दूसरे का इंतज़ार भला किस हक़ से करते हैं हम??
इक अर्से से इक-दूसरे को हम बस यही समझाते आए हैं कि...
"मोहब्बत राब्तों की मोहताज नहीं होती,
राब्ते ना भी हो अगर तब भी मोहब्बत ख़त्म नहीं होती,"
तो अब इक-दूसरे से राब्तों का सवाल भला किस हक़ से करते हैं हम??
वक़्त रहते इक-दूसरे की ग़लत-फ़हमियों को दूर करना ज़रूरी होता है
लेकिन इक-दूसरे से सच को ही छुपाना पड़ता हो जहाॅं और
इक-दूसरे पर अगर यक़ीन ही नहीं है जहाॅं
ऐसे बे-यक़ीनी वाले रिश्ते में भला और कहाॅं तक आगे बढ़ सकते हैं हम??
अपनी ही कही हुई बातें अगर हर वक़्त सही ही लगती हैं हमें,
तो फ़िर अपनी ही कही हुई बातों से अब कैसे पलट सकते हैं हम??
और, अपनी ही की हुई ग़लतियों को हम मानेंगे ही नहीं अगर,
तो उन ग़लतियों को फ़िर सुधार भी कैसे सकते हैं हम??
#bas yunhi kuchh sawaal .......
©Sh@kila Niy@z
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here